SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . .. :::::. :: ... ... ....... .. १९७) मानुष जनम सफल भयो आज॥टेक॥ सीस सफल भयो ईस नमत ही, श्रवन सफल जिनवचन समाज!। मानुष. ।। भाल सफल जु दयाल तिलकतै, नैन सफल देखे जिनराज। जीभ सफल जिनवानि गानते, हाथ सफल करि पूजन आज। मानुष. ॥१॥ पाँय सफल जिन भौन गौनतें, काय सफल नाचें बल गाज। वित्त सफल जो प्रभुकौं लागै, चित्त सकल प्रभु ध्यान इलाज। मानुष.॥२॥ चिन्तामनि चिंतित-वर-दाई, कलपवृच्छ कलपनतें काज। देत अचिंत अकल्प महासुख, 'द्यानत' भक्ति गरीबनिबाज॥मानुष.॥३॥ मेरा मनुष्य जन्म पाना आज सफल हो गया। भगवान के चरणों में नमन करने के कारण शीश तथा समाज में जिन वचन सुनने के कारण ये कान सफल हो गए। भाल (ललाट) भगवान की पूजा की केसर का तिलक लगाने के कारण और नयन श्रीबिंब के दर्शन करने के कारण सफल हुए हैं। जिव्हा श्रीजिन का गुणगान करने से तथा हाथों से श्रीजिन की पूजा करने से सफल हो गए हैं, इनका होना सार्थक हो गया है। (पाँवों से) चलकर जिन मन्दिर तक जाने से पाँव सार्थक हो गये तथा यह देह जिनपूजा के मध्य भक्तिपूर्वक मग्न होकर नृत्य करने से सफल हो गई। वित्त (धन) प्रभु के निमित्त कार्य में संलग्न होने से सफल हो गया तथा चित्त ध्यान में लगने के कारण सफल हो गए हैं। ऐसे चिंतामणि का चिंतन ही वरदान है और कल्पनाओं के साकार होने के लिए कल्पवृक्ष के समान है । धानतराय कहते हैं कि ऐसे दीनदयाल की भक्तिपूजा से अचिन्त्य, महासुख का लाभ होता है। द्यानत भजन सौरभ २२७
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy