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________________ ( १९६ ) राग बसन्त गोदि तारो हो विकरि करौं सेव ॥ टेक ॥ तुम दीनदयाल अनाथनाथ, हमहूको राखो आप साथ ॥ मोह. ॥ १ ॥ यह मारवाड़ संसार देश, तुम चरनकलपतरु हर कलेश ॥ मोह. ॥ २ ॥ तुम नाम रसायन जीय पीय, 'द्यानत' अजरामर भव त्रितीय ॥ मोह. ॥ ३ ॥ हे देवाधिदेव । मैं मन, वचन और काय सहित आपकी सेवा में रत हूँ, मुझे तारिए, पार लगाइए । - हे प्रभु! आप दीनदयाल हैं, दीनों के प्रति दयालु हैं, अनाथ के नाथ हैं। आप हमें अपने साथ रखिए । २२६ मारवाड़ की भूमि - सा यह बंजर देश है। उसमें आपके चरण ही कल्पवृक्ष के समान हमारे सब क्लेशों का निवारण करनेवाले हैं, उन्हें दूर करनेवाले हैं । आपका नाम ही औषधि है, जिसका सेवनकर, जिसे पीकर द्यानतराय कहते हैं कि तीन लोक के भवभ्रमण से छूटकर जरारहित, अमर मृत्युरहित हो जाते हैं । - छानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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