SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१७३) जिन के भजन में मगन रहु रे!॥ टेक॥ जो छिन खोवै बातनिमादि को छिन भजन क र जाहिं। भजन भला कहतें क्या होय, जाप जपैं सुख पावै सोय ॥२॥ बुद्धि न चहिये तन दुख नाहि, द्रव्य न लागै भजनकेमाहिं ॥३॥ षट दरसनमें नाम प्रधान, 'द्यानत' जर्षे बड़े धनमान ॥ ४॥ अरे भाई ! जिनेन्द्र के भजन में मग्न रहो, उनके भजन में लगे रहो। जो एक क्षण भी बातों में गवाता है, वह यदि उस एक क्षण में भजन करता तो पापों का नाश कर लेता। भजन को मुँह से कहने से कोई लाभ नहीं होता । उसका निरंतर अंत:करण से जाप करते रहने से ही सुख की प्राप्ति होती है। देह के दु:खों में बुद्धि मत लगा, भजन करने में कोई धन नहीं लगता । अर्थात् भजन करने के लिए द्रव्य नहीं जुटाना पड़ता। छहों दर्शनों में प्रभु का नाम/प्रभु की भक्ति ही प्रमुख है। द्यानतराय कहते हैं कि जो उस नाम को जपते हैं, वे धन्य होते हैं, भाग्यशाली होते हैं। द्यानत भजन सौरभ २०३
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy