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________________ (१४९) सुन सुन चेतन! लाड़ले, यह चतुराई कौन हो। टेक॥ आतम हित तुम परिहर्यो, करत विषय-चिंतौन हो। सुन.॥ गहरी नीव खुदाइकै हो, मकां किया मजबूत । एक घरी रहि ना सकै हो, जब आवै जमदूत हो।सुन.॥१॥ स्वारथ सब जगवल्लहा हो, विनु स्वारथ नहिं कोय। बच्छा त्यागै गायको रे, दूध बिना जो होय । सुन. ॥ २॥ और फिकर सब छांडि दे हो, दो अक्षर लिख लेह । 'द्यानत' भज भगवन्तको हो, अर भूखेको देह हो॥सुन.॥३॥ हे चेतन! सुनो, यह कैसी चतुराई है ! तुमने अपनी आत्मा के हित का विचार छोड़ दिया है और इन्द्रिय-विषयों की चिन्ता करते हो ! गहरी नींव खुदा करके तो तुमने अपने भवन के आधार का, मजबूती का ध्यान रखा । पर यह नहीं सोचा कि जब यमदूत आएँगे तो तुम एक घड़ी भी उसमें नहीं रह सकोगे, रुक नहीं सकोगे। जगत में सबको स्वार्थ ही प्रिय है, स्वार्थ के कारण वस्तु प्रिय लगती है। बिना स्वार्थ के कोई अच्छा नहीं लगता। बछड़ा भी उस गाय को छोड़ देता है जिसके स्तनों में दूध शेष न रहा हो। द्यानतराय कहते हैं अरे तू सारी चिन्ता-फिक्र छोड़कर (सोहं) ये दो अक्षर मन में लिख ले और भगवान का भजन कर ले । यह उतना ही आवश्यक है कि जैसे देह को भूख लगती है। १७४ धानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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