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________________ (१४८) राग मल्हार सुनो जैनी लोगो! ज्ञानको पंथ सुगम है। टेक ॥ टुक आतमके अनुभव करतें, दूर होत सब तम है॥ सुनो.॥१॥ तनक ध्यान करि कठिन करम गिरि, चंचल मन उपशम है। सु. in 'द्यानत' नैसुक राग दोष तज, पास न आवै जम है। सुनो.॥३॥ साधर्मी जैन बन्धुओ ! सुनो, ज्ञान का मार्ग सरल है, भली-भाँति गमन करने योग्य है। जरा-सा आत्मस्वरूप के चिन्तवन में अपने मन को लगाने पर संसार के दुःखरूपी अंधकार के विचार से मन हट जाता है। जरा-सा आत्मस्वरूप का चिन्तवन करने पर कर्मरूपी पहाड़ की उतुंगता - ऊँचाई तथा मन की चंचलता, दोनों का उपशम हो जाता है, कुछ समय के लिए उनके परिणाम नीचे दब जाते हैं, उभरकर फल नहीं दे पाते। द्यानतराय कहते हैं कि तनिक-सा राग-द्वेष छोड़, फिर यम का भय भी पास नहीं फटकता है अर्थात् मृत्यु का भय भी आतंकित नहीं करता है। धानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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