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सुनो! जैनी लांगा, ज्ञानको पंथ कठिन है ॥ टेक ॥ सब जग चाहत है विषयनिको, ज्ञानविषै अनबन है । सुनो. ॥
राज काज जग घोर तपत है जूझ मेरें जहा रन है। सो तो राज हेय करि जानें, जो कौड़ी गाँठ न है ॥ सुनो. ॥ १ ॥
कुवचन बात तनकसी ताको, सह न सकै जग जन है। सिर पर आन चलावैं आरे, दोष न करना मन है । सुनो. ॥ २ ॥
ऊपरकी सब श्रोधी बातैं, भावकी बातें कम है। 'द्यानत' शुद्ध भाव है जाके, सो त्रिभुवनमें धन है ॥ सुनो. ॥ ३ ॥
अरे जैन साधर्मी बन्धुओ ? ज्ञान का मार्ग कठिन है अर्थात् सरल नहीं है । सारा जगत विषय-भोग को चाहता है, उसमें रत होकर मस्ती से खोया सा रहता है। ज्ञान की जागृति से उसका विरोध हैं, अनबन है। क्योंकि ज्ञान में और विषय- भोग में परस्पर विरोध है ।
राजकार्यों में जहाँ पद व धन के लोभ में भारी तपन है, कष्ट हैं, उसके लिए युद्ध में जूझता है, प्राणों की आहुतियाँ देता है। वह राज्य तो हेय है ऐसा जान लो। एक भी कौड़ी तुम्हारी अपनी सम्पत्ति नहीं है, स्थिर नहीं है ।
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कोई जरा-सी खोटी बात कह दे, तो जगत में कोई भी व्यक्ति उसे साधारणत: सहन नहीं करता । तत्काल सिर पर आरी के समान घात करता है और उसको मन से दोष नहीं मानता। अर्थात् बात का तो बुरा मानता है पर घात को बुरा नहीं
मानता !
ये सब ऊपरी थोथी - खोखली बातें हैं। इसमें भाव अर्थात् मर्म की कोई बात नहीं हैं । ह्यानतराय कहते हैं कि जिसके भाव शुद्ध है, उसके पास तीन लोक की संपदा है।
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द्यानत भजन सौरभ