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लागा आतमसों नेहरा॥ टेक॥ चेतन देव ध्यान विधि पूजा, जाना यह तन देहरा॥ लागा. ॥१॥ मैं ही एक और नहिं दूजो, तीन लोकको सेहरा ॥ लागा.॥२॥ 'द्यानत' साहब सेवक एकै, बरसै आनंद मेहरा ॥ लागा.॥३॥
मुझे अपनी आत्मा से ही नेह है, प्रीति है।
इस जीव ने परमदेव का ध्यान करके, उनकी पूजा करके यह जाना कि आत्मा का घर/मन्दिर यह देह ही हैं, वह इसी में बिराज रहा है। ___ मैं एक अकेला हूँ, कोई अन्य/दूसरा मेरा नहीं है। ऐसे आत्मध्यान में रत होने पर तीन लोक में श्रेष्ठ पद प्राप्त होता है अर्थात् तीन लोक का स्वामी पद मिलता है।
द्यानतराय कहते हैं कि वह पूज्य व पूजक, स्वामी और सेवक एक आत्मा ही हो जाता है तब सदा आनंद की वृष्टि होती है।
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द्यानत भजन सौरभ