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तुम चेतन हो ॥ टेक ॥
जिन विषयनि सँग दुख पावै सो क्यों तज देत न हो ॥ तुम. ॥ १ ॥ नरक निगोद कषाय भमावै, क्यों न सचेतन हो । तुम ॥ २ ॥ 'द्यानत' आपमें आपको जानो, परसों हेत न हो ॥ तुम. ॥ ३ ॥
हे प्राणी ! तुम चेतन हो । ज्ञानवान हो ।
जिन इंद्रिय विषयों के संग/की संगति के कारण तुम दुःख पा रहे हो उन इन्द्रिय विषयों को छोड़ क्यों नहीं देते हो?
इनके कारण कषायों में लिप्त होकर नरक और निगोद में भटकना पड़ता है, तो तुम इनसे सचेत क्यों नहीं होते?
धानतराम कहते हैं कि अपने आप को जानो, तब तुम पर से विमुख हो जाओगे, पर से ध्यान हट जायेगा तो उससे लगाव नहीं रहेगा ।
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द्यानत भजन सौरभ