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(१००% ... . . . . . . चेतन! तुम चेतो भाई, तीन जगत के नाथ॥ टेक॥ ऐसो नरभव पाचक, काहे विषया लवलाई॥चेतन.॥१॥ नाहीं तुमरी लाइकी, जोवन धन देखत जाई। कीजे शुभ तप त्यागकै, 'द्यानत' हूजे अकषाई ।चेतन. ।। २ ।।
हे चेतन ! अब तो चेतो। तुम तो तीन लोक के नाथ/स्वामी हो। ऐसा मनुष्य जन्म पाकर तुम इन्द्रिय-विषयों में रत क्यों हो?
इसमें तुम्हारी योग्यता नहीं है कि तुम यौवन, धन आदि को ही देख रहे हो, उन्हीं में अटक रहे हो। तुम शुभ तप और त्याग करो, द्यानतराय कहते हैं कि ऐसा करने से तुम कषायरहित हो जाओगे।
द्यानत भजन सौरभ