________________
चेतनजी! तुम जोरत हो धन, सो धन चलत नहीं तुम लार ।। टेक ! जाको आप जान पोषत हो, सो तन जलकै है है छार॥ चेतन. ।।१।। विषय भोगके सुख मानत हो, ताको फल है दुःख अपार॥चेतन.॥२॥ यह संसार वृक्ष सेमरको, मान कहो हाँ कहत पुकार॥चेतन.॥३॥
हे चेतन ! तुम धन संग्रह में लगे हो । पर यह धन तुम्हारे साथ नहीं जायेगा।
तुम अपना जानकर जिस शरीर का पोषण करते हो, वह शरीर भी साथ नहीं जाता, वह भी जलकर के खाक/भस्म हो जाता है।
तुम विषयभोग में सुख मानते हो, उनका फल अपार दुःख ही मिलता है। यह संसार सेमर के वृक्ष के समान है। सेमर वृक्ष के फूल देखने में सुन्दर होते हैं, परन्तु उसके फल निस्सार होते हैं । ज्ञानीजन पुकार करके तुमको समझा रहे हैं, चेता रहे हैं, तुम यह मान लो, समझ लो।
द्यानत भजन सौरभ