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राग ख्याल
आलम जान रे जान रे जान ॥ टेक ॥
( प्राणी ! )
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आतम. ॥ १ ॥
जीवनकी इच्छा करै, कबहुँ न मांगे काल । सोई जान्यो जीव है, सुख चाह्रै दुख टाल नैन बैनमें कौन है, कौन सुनत है बात । ( प्राणी ! ) देखत क्यों नहिं आपमें जाकी चेतन जात ॥ आतम. ॥ २ ॥
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बाहिर ढूंढ़ें दूर है, अंतर निपट नजीक (प्राणी! ) ढूंढनवाला कौन है, सोई जानो ठीक ॥ आतम. ॥ ३ ॥
तीन भुवनमें देखिया, आतम सम नहिं कोय । ( प्राणी ! ) 'द्यानत' जे अनुभव करें, तिनकौं शिवसुख होय ॥ आतम. ॥ ४ ॥
हे भव्यजीव ! अपनी आत्मा को जानो, पहचानी, समझो 1
जो सदैव जीवन की कामना करता है, कभी मृत्यु की माँग नहीं करता, दुःख को टालकर छोड़कर सदैव सुख चाहता हैं, जो ऐसा चाहता है वह ही जीव है यह जाना जाता है ।
आँखों से कौन देखता है, बचन से कौन बोलता है, कानों से बात कौन सुनता है ? यह जान ! अरे, जो देखता है, बोलता है, सुनता है वही आत्मा है, वही चेतनस्वरूप है, उसे जान । वह तेरे भीतर ही है। तू अपने आप में अपने चेतन स्वरूप को क्यों नहीं निहारता ? क्यों नहीं देखता ? जिसकी जाति ही चेतन है !
तू उसे बाहिर ढूँढ़ता है, जहाँ से वह बहुत दूर है जबकि वह तो सदा तेरे बिल्कुल निकट है, पूर्णत: समीप है। अरे यह ढूँढ़नेवाला कौन है ? तू उसे ही भली प्रकार जान ले, वह ही आत्मा है ।
तीन लोक में अच्छी तरह देख ले, आत्मा के समान अन्य कोई तत्व / द्रव्य / पदार्थ नहीं हैं। द्यानतराय कहते हैं कि जो आत्मा का अनुभव करते हैं, उन्हें शिवसुख अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति होती है।
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ह्यानत भजन सौरभ