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(६८) अब मैं जाना आतमराम॥ टेक॥ इह परलोक थोक सुख साथै, तज चिन्ता धन धाम॥अब.॥१॥ जनम मरन भय दूर भगाया, पाया अमर मुकाम ॥ अब.॥२॥ 'धानत' ज्ञान सुधारस चाखो, नाखो विष दुख ठाम।अब.॥३॥
अब मैंने अपने आत्मस्वरूप को जान लिया है अर्थात् आत्मा को जान लिया है, पहचान लिया है।
इस ज्ञान से धन व घर की चिन्ता को छोड़कर इस लोक और परलोक दोनों में सुख की साधना होती हैं।
उसे (आत्मा को) जानने पर उस देह की जन्म और मरण की क्रिया का भय दूर हो जाता है और वह स्थान जहाँ कभी मृत्यु नहीं होती उसकी प्राप्ति होती है अर्थात् मोक्षपद मिलता है।
द्यानतराय कहते हैं कि उस ज्ञानामृत को पीकर, सारे दुःखरूपी हलाहल यानी विष को वमन करनेवाली, छोड़नेवाली स्थिति को प्राप्त करो।
झानत भजन सौरभ