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(६७) भज जम्बूस्वामी अन्तरजामी, सब जग नामी शुभवानी ॥ टेक॥ मथुरा-नगर मुकतमें पहुँचे, अंतकेवली शिवथानी ॥भज.॥१॥ सहित अनन्त चतुष्टय साहिब, रहित आठ दश सुखदानी॥भज,॥२॥ 'द्यानत' वन्दों पाप निकन्दों, भव-दुख-पावक-हर-पानी ।। भज. ॥३॥
हे भव्य! तू अन्तर्यामी अर्थात् सर्वज्ञ जम्बूस्वामी का भजन कर । जिनकी शुभवाणी, सारे जगत में प्रसिद्ध है।
मथुरा नगर से वे निर्वाण को प्राप्त हुए अर्थात् मोक्ष सिधारे । वे इस काल में मोक्ष को जानेवाले अन्तिम केवली थे।
वे अठारह दोषरहित हैं, अनन्तचतुष्टय सहित हैं और सुखदाता हैं।
द्यानतराय कहते हैं कि उनकी वन्दना पापों का नाश करनेवाली है और भवभ्रमण की दुःखरूपी अग्नि की तपन को मिटाने के लिए जल के समान है।
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धानत भजन सौरभ