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________________ कहा री कहूं कछु कहत न आवै, बाहूबल बल धीरज री॥टेक॥ जल मल दिष्ट जुद्धमें जीत्यो, भरत चक्रको वीरज री। कहा.॥१॥ जोग लियो तन फननि घर कियो, शोभा ज्यों अलि-नीरज री। कहा.॥२॥ 'धानत' बहुत दान तब दै हौं, पै हौँ चरननकी रज री॥ कहा.॥३॥ भगवान बाहुबली के बल व धैर्य के विषय में क्या कहूँ, कुछ कहते हुए नहीं बनता। जल, मल्ल और दृष्टि युद्ध में जिसने भरत चक्रवर्ती के वीर्य को परास्त कर विजय प्राप्त की थी। ___ फिर मुनिपद धारण किया तो साधनाकाल में सो ने जिनके शरीर पर बांबियाँ बनाली, वे कमल पर मँडराते भँवरे के समान शोभायमान हो रहे हैं। द्यानतराय कहते हैं कि बहुत दान देनेवाले को उनके चरणों को रज की प्राप्ति होती है अर्थात् उनके दर्शन का अवसर मिलता है। घानत भजन सौरभ
SR No.090167
Book TitleDyanat Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachandra Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajkot
Publication Year
Total Pages430
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Poem
File Size5 MB
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