________________
द्विसन्धानमहाकाव्यम्
मध्य स्थितं मण्डल मंबद्धं मित्र जिगीष्वोरित्र पीड्यमानम् । सन्देहभाव स्तनचकमासीत् साधारणं तत्रिययोहूर्तम् ॥ ६३ ॥
7
मध्येति---आसीत् सञ्जातं किम् ? तत् स्तनच कम्भूतम् ? सन्देहभावसंशयरूपम्, काम् । मुहूर्त क्षाम् कथम्भूतं सत् ? साधारणम्, कयोः ? प्रियको भयोः किंमिय ? जीवमित्रमिव कि क्रियमाणम् पम्पमान, कम्युतं सत् ? मध्यस्थितम् अन्तरालगत पुनः मन्दलधर्मवद्ध देशमंत्रद्धम् ||६३||
P
३३६
ני
आलिम गार्ड मधुरं ध्वनन्ती मुखे सुखं न्यस्य वधूः शिवस्य । विस्मृत्य कर्णान्तरमुन्मत्वादास्त्रे जपन्तीव बभौ रहस्यम् ||६४ || आदिगोभिरा ? बधुः कुर्वती ? गाऊमाणात कुजतो थं यथा भवति ? का ? पूर्व स्वारोप्य किम् सुखं पब ? मुले, कस्य ? प्रियस्य वल्लभस्य हि कुमुखे रहस्यं अतीव निष्यन्तीय, कि कृत्या ? विस्मृत्य किम् ? कर्णान्तरम् कस्मात् ? उन्मत्तत्वादुन्यत्तताया इति शेषः ॥६४॥
far nagaत्रयां प्रशमयितुं रसमुत्क्षित्र । अधिनिसनच्छलादजनि जनः सकलां गिलमिव ॥ ६५||
किम- अमित असं ? जनः किं कुर्व?ि उत्पयशिव संभवम्यात् ? मुखात् कर्तुमि ? प्रियां प्रशमथितुमिव ?यम् ? साङ्गोपाङ्गा सम चुम्बनं न विकले विरतिपते अविरत व्याजात् ।। ६५ ।।
कथम्भूतान् ? मधुरसियन
नाम् कत्मात्
नीरुतं च निखनं च स्वनियने अविरत व निच ते तयोको
दोनों प्रेमियोंके यिनके समय बीचमें दबा वर्तुलाकार स्वाभाविक स्तनचक्र क्षण भर के लिए सन्देहमें पड़ गया था क्योंकि यह दो विजेताओंके मध्यस्थ मित्रको स्थितिमें था [ मण्डल कर्ती भवनासे प्रेरित संघर्षरत दोनों पक्षोंका मित्र राजा जब संघर्ष रोकने के लिए मध्यस्थता है तो उसे दोनोंके श्राक्रसा सहने पड़ते हैं । तथा कुछ समय दोनों ही उसपर शंका करते हैं ] ॥ ६३॥
का गढ़ थालिन करते मधुर मधुर नाती ने उसके मुखमें अपना मुख डाल दिया था। और नन्दके प्रतिरेकमें सुव होकर फान तथा मुखका अन्तर भूलकर वह सुखमें हो सुप्त बात कहलो-सी लग रही थी ॥ ६४ ॥
मद्यपान के कारण रतिकेलिने मस्त प्रियाको शान्त करने के लिए उसके मुखमें सुख डालकर रति को पीते हुए के समान, प्रेमी ऐसा लगता था कि वह पुरीकी पूरी प्रियतमाको ही निगले जा रहा है । क्योंकि रति-सुखमें तीन प्रियाको भीमपुर गुनगुनाहट और लुम्बन शान्त हो गये थे ॥ ६५ ॥
अपने antart बाओंके विद्युत भारके कारण भारी, प्रेयसी प्रेमके विशाल शरीरमें समा गयी थी । किन्तु प्रकृतिले चंबल तथा सब प्रकार से छलिया प्रेमीके मनमें यह प्रेमिकाका शरीर कहाँ और कितना समाता है यही प्रथा ॥ ६६ ॥
५. अपत्र वुक्तम् लक्षणं गु-." --"अयुजि तन रा शुरू सत्र तत्रो गरौं” [ ৠ० २० ४। १ ] ।