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द्रव्य संग्रह प्र-जाप्य को इस प्रकार मागे-पीछे बोलने में कोई दोष नहीं लगता?
उ-नहीं। जैसे-लड्डू को किधर से भी खाइये, मीठा-ही-मोठा है । उसी प्रकार णमोकार मंत्र का { ३५ अक्षर का मन्त्र ) जाप कहीं से भी अपिये, आनन्द और शांति का ही प्रदाता है।
प्र०-ध्यान की सिद्धि के लिए जाप्य को विधि बताइये।
उ०-जाप्य तीन प्रकार से किया जाता है १-वाचनिक, २-मानसिक, ३-उपांशु जाप्य
वाचनिक-वचन मे बोलकर जप करना । मानसिक-मन-मन में उच्चारण करना । उपांश-ओठों को हिलाते हुए मन्द-मन्द स्वर में जाप करना ।
इनमें मानसिक बार उत्तम है 1 उसका फल भी उनम है। 'उपाश्" जाप मध्यम है तथा वाचनिक जाप जघन्य है।
प्र०-एक हो जप को १०८ बार बोलते-बोलन भो मन स्थिर नहीं रहता है । उसे रोकने का क्या उपाय है ?
०-एक माला में एक ही मन्त्र का उच्चारण करना आवश्यक नहीं है। स्थिरता के लिए एक ही माला में भिन्न-भिन्न जाप भी कर सकते है, जिससे चञ्चल मन क जाता है जैसे-ओम् नमः । ओ३म ह्रीं नमः । बो३म् असि आ उ सा नमः। ओश्म अर्हद्भ्यो नमः । सिद्धेभ्यो नमः । सरिभ्यो नमः । पाठकेभ्यो नमः । माधुभ्यो नमः आदि रूप से चौबीस तीर्थकर, स धर्म, रत्नत्रय, सोलहकारण भावना, पूज्य परमेष्ठियों के वाचक माम आदि के आधार से भिन्न-भिन्न जाप करें। उस समय अन्दर में विचार करें, एक बार जिस बाप को जप लिया है पुनः नहीं जपूंगा । नये-नये की खोज में मन केन्द्रित हो जायेगा। ध्यान की साधना में सफलता प्राप्त होगी।
अरहंत परमेष्ठी का स्वरूप नहषाइकम्मो । सनसुहणाणवोरियमईओ। सुहबेहत्यो अप्पा, सुबो मरिहो विचितिम्रो ॥ ५० ॥
(षट्चक्षुधाइकम्मो) जिसने चार पातिया कर्म नष्ट कर दिये हैं। (सणसुदणाणवोरियमईओ) बो दर्शन, सुख, शान तथा बीर्यमय है।