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द्रव्य संग्रह अबया
(विचित्तझाणपसिद्धोए ) अनेक प्रकार के ध्यान की सिद्धि के लिए । ( जइ ) यदि । ( चिर्स | चित्त को। ( थिरं ) स्थिर करना । (इच्छह ) चाहते हो तो । ( इणिठ्ठात्थेसु) इष्ट और अनिष्ट पदार्थों में । ( मा मुझह ) मोह मत करो। ( मा रजह ) राग मत करो। ( मा दुस्सह ) देष मत करो। अपं
( भव्य जीवो ! ) अनेक प्रकार के ध्यान को सिद्धि के लिए यदि चित्त को स्थिर करना चाहते हो तो इष्ट और अनिष्ट पदार्थों में मोह मत. करो। राग मत करो । द्वेष मत करो।
प्रा-ध्यान की सिद्धि के लिये आवश्यक सामग्री क्या है ? १०-चित्त ( मन ) को एकाग्रता। प्र०-चित्त की एकाग्रता के लिये आवश्यक सामग्रो क्या है ?
-प्रिय पदार्थों में मोह मत करो, राग मत करो और प्रिय पदार्थों में द्वेष मत करो।
प्र.-मोह किसे कहते हैं ?
उ०-परवस्तु को अपना मानना व अपने को भूल जाना मोह काह लाता है।
प्र०-राग किसे कहते हैं ? २०-इष्ट वस्तु में प्रोति को राग कहते हैं । प्र०-वेष किसे कहते हैं ? उ.-अनिष्ट वस्तु में अप्रीति को द्वेष कहते हैं। प्र०-ध्यान के अनेक प्रकार कौन-से हैं? उ०-१-पिण्डस्थ, २-पदस्थ, ३-रूपस्थ, "-रूपातीत । पिण्डस्प-पिण्डस्थं स्वारम चिन्तन'–अर्थात शरीर में स्थित वाल्मा का चिन्तन करना।
पदस्थ -'मन्त्रवाक्यों' के चिन्तन को पदस्थ ध्यान कहते हैं। रूपस्थ-शुचिदरूप अहंन्तों का ध्यान । रूपातीत-रूपातीतं निरन्जन सिद्धपरमेष्ठी का ध्यान करना। प्र०-ध्यान की आवश्यकता क्यों है? १०-क्योंकि मोक्षमार्ग की सिद्धि बिना ध्यान के नहीं हो सकता है।