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द्रव्य संग्रह
अर्थ
पदार्थ के विषय में पदार्थों का विशेष अंश ग्रहण नहीं करके, पदार्थों का जो सामान्य ग्रहण अर्थात् जानना है उसे आगम में दर्शन कहा जाता है।
प्र० - किसी भी पदार्थ में कितने अंश पाये जाते हैं ?
उ०- प्रत्येक पदार्थ में दो अंश पाये जाते हैं -१ - सामान्य अंश और २- विशेष अंश ।
प्र० - सामान्य अंश को ग्रहण करने वाला क्या कहा जाता है ?
उ०- सामान्य अंश का जानना दर्शन कहलाता है। इसमें पदार्थ के आकार का ज्ञान नहीं होता है, केवल सत्ता का भान होता है। जैसेसामने कोई पदार्थ आने पर सबसे पहले यह कोई पदार्थ है इतना मात्र जानना 'दर्शन' है ।
प्र० - विशेष अंश का ग्राहक किसे कहते हैं ?
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उ०- सामान्य अंश के ग्रहण के बाद विशेष अंश का ग्राहक या जानने वाला 'ज्ञान' कहलाता है। जैसे- सामने कोई पदार्थ आने पर पदार्थ मात्र का ग्रहण करने वाला तो दर्शन है पर वह पदार्थ काला है, पीला है या - लाल है आदि रूप विकल्प सहित शान होता 'ज्ञान' कहलाता है ।
दर्शन और ज्ञान की उत्पत्ति का नियम
बंसणपुण्वं जाणं, छद्मस्थानं ण तुष्णि उवओोगा । जुगवं जम्हा केवलिणाहे जुगवं तु ते बोनि २२४४॥ अम्ययार्थ—
(छद्मस्थान ) अल्पज्ञानियों के । ( दंसणपुब्वं ) वर्षांनपूर्वक 1 ( णार्ण ) ज्ञान होता है ! ( जम्हा ) क्योंकि । ( दुण्णि ) दोनों। ( उवओोगा ) उप
योग ( जुगवं ) एक साथ। (ण) नहीं होते हैं। (तु) किन्तु । ( केवलिणाहे } केवलज्ञानी के । (ते ) वे । ( दोषि ) दोनों हो। ( जुगवं ) एक साथ होते हैं ।
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अल्पज्ञानियों के दर्शनपूर्वक ज्ञान होता है क्योंकि उनके दोनों उपयोग
एक साथ नहीं होते हैं किन्तु केवलज्ञानी के ये दोनों ही उपयोग एक साथ होते हैं ।