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द्रव्य संग्रह
प्र० - सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं ?
उ०-जीव, अजीव, आसव, बन्ध, संबर, निर्जरा और मोक्ष इन सात शस्त्रों का श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है ।
प्र०-आत्मा का वास्तविक स्वरूप क्या है ? उ०- सम्यक् दर्शन |
प्र०-ज्ञान में समीचीनता कम आती है ?
उ०- सम्यक् दर्शन के होने पर ज्ञान समोचीन या सम्यक् ज्ञान कहलाता है ।
प्र० - सम्यक् ज्ञान में कौन से दोष नहीं होते ? ०-१-संशय, २ - विपर्यय और ३-अनध्यवसाय |
प्र०-संशय किसे कहते हैं ?
रा०-विरुद्ध नाना कोटि के स्पर्श करने वाले ज्ञान को संशय कहते हैं। इसके होने पर किसी पदार्थ का निश्चय नहीं हो पाता, क्योंकि इसके होने पर बुद्धि सो जाती है - 'समीचीनतया बुद्धिः शेते यस्मिन् सः संशयः' ।
प्र० - विपर्यय किसे कहते हैं ?
७- विपरीत एक कोटि को स्पर्श करने वाला ज्ञान विपर्यय कहलाता है । जैसे- सीप को चाँदी समझ लेना ।
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प्र० - संशय और विपर्यय में क्या अन्तर है ?
० संशय में सोप है या चाँदी ? ऐसा संशय बना रहता है। निर्णय नहीं हो पाता, परन्तु विपर्यय में एक फोटि का निश्चय होता है जैसे-सीप को सोप न समझकर चांदी समझ लेना ।
प्र-अनध्यवसाय किसे कहते हैं ?
० -अध्यवसाय का अर्थ है निश्चय और इसका न होना अनव्यवसाय कहलाता है। जैसे रास्ते में चलते समय पैरों के नीचे अनेक चीज आती हैं, पर उनमें से निश्चय किसी एक का भी नहीं हो पाता है, यही ज्ञान. अनव्यवसाय कहलाता है ।