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द्रव्य संग्रह
प्र०-धर्म किसे कहते हैं ? उसके दस भेद बताइये ।
उ०- जो आत्मा को संसार के दुःखों से छड़ाकर उत्तम स्थान में प्राप्त करावे उसे धर्म कहते हैं। दस धर्म - उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप उत्तम त्याग उत्तम आकिञ्चन्य, उत्तम ब्रह्मचर्य ।
प्र०-अनुप्रेक्षा का लक्षण व उसके बारह भेद बताइये ।
उ०- शरीरादिक के स्वरूप का बार-बार चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है। ३. संसार, ४ एकत्व, बारह अनुप्रेक्षाएँ -- १. अनित्य, २. अशरण, ५. अन्यत्व, ६. अशुचि, ७. आस्रव ८. संवर, ९. निर्जरा, १०. लोक, ११. बोविदुर्लभ और १२. धर्म ।
प्र०-परोषहजन किसे कहते हैं ? उसके बाईस भेद बताइये ।
उ०-क्षुवा. तषा ( भूख-प्यास ) आदि की वेदना होने पर कर्मों की निर्जरा के लिए उसे शान्त भावो से सह लेना परोषहजय कहलाता है । बाईस परीषह - १ - क्षुधा तृषा, ३- शीत, ४- उष्ण, ५- देश मशक, ६- ताग्न्य, ७-- अरति, ८- स्त्री, २ - चर्या, १०- निषद्या, ११-सय्या, १२ - आक्रोश, १३ – वध, १४ - याचना, स्पर्श, १८- मल १९ - सरकार पुरस्कार, २२- अदर्शन |
१५ - अलाभ, १६ - रोग, १७ – तृग२१- अज्ञान,
२०- प्रज्ञा,
इन २२ परीषड़ों को जोड़ना २२ प्रकार का परीषह्जय कहलाता है । प्र० - चारित्र का लक्षण बताकर उसके पांच भेद बताइये । उ०- कर्मों के आस्रव में कारणभूत बाह्य आभ्यन्तर क्रियाओं के रोकने को चारित्र कहते हैं। पाँच प्रकार का चारित्र - १ - सामायिक, २- छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि ४ - सूक्ष्मसाम्पराय और ५ - यथा
ख्यात ।
प्र० - उपसर्ग और परीषह में क्या अन्तर है ? उ०- उपसर्ग कारण है और परीषद् कार्य है ।
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