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द्रव्य-संग्रह
पाँच भेद-हिसा अविरति, असत्य अवरति, चौर्य अविरति, कुशील अविरति और परिग्रह अविरति ।
प्र-प्रमाद किसे कहते हैं ? इसके पन्द्रह भेद बताओ।
उ०-शम क्रियाओं में उत्साहपुर्व प्रवृत्ति नहीं करना प्रमाद है या स्वरूप की असावधानी। इसके पन्द्रह भेद-४ विकथा, ४ कषाय, ५ इन्द्रिय विषय, १ निद्रा और १ स्नेह है।
प्र०-योग किसे कहते हैं ? उसके भेद बताइये ?
उ०-मन, वचन, काय को क्रिया को योग कहते हैं। इसके तोन भेद-मनोयोग, वचनयोग और काययोग । प्र. कषाय के ४ भेद कौन से हैं ? ०-१-कोष, २ माघ, २-माया और ४- साम ।
द्रव्यास्त्रव का स्वरूप व भेद णाणावरणादोणं जोग्गं जं पुग्गलं समासदि ।
बम्बासवो स ओ, अणेयभेमो जिगलादो ॥३१॥ बम्बया
(णाणावरणादोणे ) ज्ञानावरण आदि कर्मों के। ( जोग्गं ) योग्य । (जं) जो। (पुग्गलं ) पुद्गल । ( समासवदि ) आता है । (स ) वह । (जिणक्खादो) जिनेन्द्रदेव के द्वारा कहा हुआ। ( दम्बासवो) द्रव्यास्रव । ( अणेयभेदो) अनेक प्रकार का । ( णेओ) जानना चाहिए। बर्ष
शानावरण आदि आठ कर्मों के योग्य जो पुद्गल आता है, वह व्यास्रव जिनेन्द्र देव के द्वारा कहा हुआ अनेक प्रकार का जानना चाहिए।
प्र-द्रव्याखव किसे कहते हैं ? .
उ.--ज्ञानावरणादि आठ कर्मों के योग्य जो पुद्गल आता है, उसे द्रव्यानव कहते हैं।
प्र-संक्षेप में द्रव्यास्रव कितने प्रकार का है ?
उ०-द्रव्यासव संक्षेप में आठ प्रकार का है-ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु, नाम, गोत्र और अन्तराय ।