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प्रव्य संग्रह प्र-दोनों में समान शक्ति है या न्यूनाधिक ? च-दोनों में समान शक्ति है।
प्रक-यदि दोनों में समान शक्ति है तो संसार में न कोई चल सकता है और न कोई ठहर सकता है, क्योंकि जिस समय धर्म द्रव्य चलने में किसी को सहायक होगा उसी समय अधर्म द्रव्य ठहरने में सहायक होगा।
-धर्म और अषम द्रव्य उदासीन कारण हैं यदि प्रेरक कारण होते सो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती थी । धर्म द्रव्य अवरन किसी को चलने को प्रेरणा नहीं करता तथा अधर्म द्रव्य भो अबरन किसी को ठहरने को प्रेरणा नहीं करता।
. आकावा द्रव्य का स्वरूप व भेव अबगासदाणमोग्गं जीवावीणं वियाण आयासं ।
जेण्हं लोगागास, अस्लोगागासमिति दुषिहं ॥१९॥ अम्बयार्थ
( जीवादीण ) जीवादि समस्त द्रव्यों को। (अवगासदाणजोगं) अवकाश देने योग्य । ( जैण्ह ) जिनेन्द्र देव के द्वारा कहा गया । (आयासं) आकाश ! (वियाणं ) जानो। ( लोगागासं) लोकाकाश । ( अल्लोगा। गास ) अलोकाकाश । ( यदि ) इस प्रकार । (दुविह) आकाश यो प्रकार का है। वर्ष
जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल इन द्रव्यों को जो अवकाश देने योग्य है उसे आकाश द्रव्य जिनेन्द्र भगवान ने कहा है। उस आकाश के दो भेद हैं-१-लोकाफाश, २-अलोकाकाशन
प्र०-आकाश द्रव्य किसे कहते हैं ?
२०-जीवादि पांच द्रव्यों को रहने के लिए जो अबकाश स्थान थे, उसे आकाश द्रव्य कहते हैं।
प्र-आकाश द्रव्य का कार्य बताइये। उल-अवकाश देना आकाश द्रष्य का कार्य है । प्र०-आकाश द्रव्य जोवादि द्रव्यों के अवगाहन में कौन-सा निमित है? उ०-उदासीन निमित्त है।