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द्रव्य संग्रह अधर्म । ( आयासं ) आकाश । ( कालो ) काल । ( अज्जीवो) अजीव । {णेओ) जानना चाहिए। ( स्वादिगुणो) रूप आदि गुणयुक्त । ( पुग्गल ) पुद्गल । ( मुत्तो) मूर्तिक है । ( सेसा दु) और शेष । (अमुत्ति ) अमूर्तिक हैं। अर्थ___ अजीव द्रव्य-पुदाल, 'प्रर्ष, आ काश मोर का ध्या-मा पांच भेदरूप जानना चाहिए। उनमें रूपादि गुणयुक्त पुद्गल मूर्तिक है तथा धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाश और काल अमूर्तिक हैं।
प्र.-मूर्तिक किसे कहते हैं ?
उ.-जिसमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श-ये गुण पाये जायें उसे मूर्तिक कहते हैं।
प्र०-अमूर्तिक किसे कहते हैं ?
३०-जिसमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श-ये गुण नहीं पाये जायें उसे अमूर्तिक कहते हैं।
प्र०-जिसे देख सके, छू सकें, संघ सकें और चख सके वह मूर्तिक है या अमूर्तिक ?
उ०-वह मूर्तिक कहा जायेगा।
प्र०-परमाणु को हम देख नहीं सकते, छू नहीं सकते, संघ नहीं सकते, चला नहीं सकते, उसे मूर्तिक कैसे कहा जा सकता है ?
उ०-अनेक परमाणु मिलकर जो स्कन्ध बनते हैं उन्हें हम देख सकते है, छू सकते हैं, सूंघ सकते हैं तथा चख भी सकते हैं। यदि परमाणुओं में रूपादि नहीं होते तो स्कन्ध में भी वे कहाँ से आते ?
प्र०-परमाणु में रूपादि बीस गुणों में से कितने गुण पाये जाते हैं ?
उ०-परमाणु में एक रस, एक गन्ध, एक वर्ण और दो स्पर्श पाये जाते हैं।
प्र०-अजीव द्रव्य कौन-कौन से हैं ?
उ०-पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल-ये पाँच द्रव्य अजीव द्रव्य हैं।
प्र०-मूर्तिक द्रव्य कितने हैं ? ममूर्तिक कितने ?
३०-जीव धर्म, अधर्म, आकापा और काल-ये अमूर्तिक है और पुदगल मूर्तिक है।