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द्रव्य संग्रह
जीव को सिद्धत्व और ऊर्ध्वगमनत्व अवस्था गिक्कम्मा अटुगुणा, किंणा चरमदेहदो सिद्धा । लोयग्गहिदा शिवछा उप्पादव एहि संजुत्ता ॥१४॥
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अन्वयार्थ
( शिवकम्मा ) ज्ञानावरणादि आठ कर्मों से रहित ( अट्टगुणा ) सम्यक्त्व आदि आठ गुणों से सहित । ( चरमदेहदो ) अन्तिम शरीर से । ( किंचुणा ) प्रमाण में कुछ कम । ( णिच्चा ) नित्य । ( उप्पादव एहि ) उत्पाद और व्यय से ( संजुत्ता) संयुक्त । ( लोयग्गठिदा ) लोक के. अग्रभाग में स्थित । (सिद्धा) सिद्ध इति है ।
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आठ कर्मों से रहित, बाठ गुणों से सहित प्रमाण में अन्तिम शरीर से कुछ कम उत्पाद, व्यय तथा श्रौष्य युक्त, लोक के अग्रभाग में अवस्थित होने वाले जोव सिद्ध कहलाते हैं।
प्र०-आठ कर्म कौन से हैं ?
० - १ - ज्ञानावरण, २- दर्शनावरण, ३- वेदनीय, ४- मोहनीय, ५-आयु, ६ - नाम, ७-गोत्र और ८-अन्तराय ।
प्र०-आठ गुण कौन से हैं ?
उ०- १ - अनन्तज्ञान, २- अनन्तदर्शन, ३- अनन्तसुख, ४- अनन्तवोर्य, ५-अव्याबाध, ६–अवगाहनत्व, ७–सूक्ष्मत्व और ८ - अगुरुलघुत्व - ये सिद्धों के आठ गुण हैं।
प्र० - किस कर्म के नाश से कौन-सा गुण प्रकट होता है ?
श० - ज्ञानावरण कर्म के नाश से अनन्तज्ञान ।
दर्शनावरण कर्म के नाश से अनन्तदर्शन । मोहनीय कर्म के नाश से अनन्त सुख । अन्तराय कर्म के नाश से अनन्तवीर्य । वेदनीय कर्म के नाश से अव्यावाच । आयु कर्म के नाश से अवगाहनस्य ।
नाम कर्म के नाश से सूक्ष्मत्व ।
और गोत्र कर्म के नाश होने से अगुरुलघुस्न गुण प्रकट होता है।