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द्रव्य संग्रह
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दीर्ण) ज्ञानावरणादि पुद्गल कमों का (कत्ता) कर्ता है। ( चिचयदो ) अशुद्ध निश्चयनय से ( वेदणक्रम्माणं ) रागादिक भाव कर्मों का ( कता ) ( कर्ता ) है ( दु ) और ( सुद्धणया) शुद्ध निश्चयनय से ! ( सुद्धभावाणं ) शुद्ध भावों का ( कत्ता ) कर्ता है।
प
आत्मा व्यवहारनय से ज्ञानावरणादि कर्मों का कर्ता है । अशुद्ध freests से रागादि भावकर्मों का कर्ता है तथा शुद्ध निश्चयनय से शुद्ध भावों का कर्ता है।
प्र० - पुद्गल कर्म कौन-कौन से हैं ?
उ०- ज्ञानावरण, दर्शनावरणादि आठ द्रव्य कर्म और छ: पर्याप्त और तीन शरीर - वे नौ नोकर्म पुद्गल कर्म है ।
प्र० मा कर्म कौन से हैं ?
उ०- राग, द्वेष, मोह आदि भाव कर्म है ।
ब्र०-जीद के शुद्ध भाव कौन से हैं?
उ०- केवलज्ञान और केवलदर्शन जीव के शुद्धभाव हैं ।
प्र०-क्या जीव कर्ता है ?
उ०- हाँ, व्यवहारनय से जीव कर्मों का कर्ता है ।
जीव व्यवहार से कर्मफल का भोक्ता है
ववहारा सुहवुक्खं पुग्गलकम्मम्फलं पभुजेबि । आंदा णिचश्रयणयवो वेदणभावं सु आवस्स ॥ ९ ॥
अपार्थ
( यादा ) आत्मा । ( वयद्वारा ) व्यवहारनय से । ( सुहदुमसं ) सुखदुःखस्वरूप | ( पुग्गलकम्मफलं ) पौद्गलिक कर्मों के फल को पशु जेषि ) भोगता है । ( णिच्चयणयदो ) निश्चयनय से । ( आदस्स) अपने । ( चेंदणभार्य) ज्ञान दर्शनरूप शुद्ध भावों को (खु) नियम से। ( पभुजेदि ) भोगता है ।
बर्थ
आत्मा व्यवहारनय से सुख-दुःख रूप पुद्गल कर्मों के फल को भोगता है और निश्चयनय से वह शुद्ध ज्ञान दर्शन का ही मोक्ता है ।