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इन दिगम्बराचार्यों द्वारा उस समय मध्यप्रदेश में जैन धर्म का खूब प्रचार हुआ था।
वि. सं. १०२५ में अल्लू राजा नामक राजा की सभा में दिगम्बराचार्य का वाद एक श्वेताम्बर आचार्य से हुआ था। चन्देल राज्य में दिगम्बर मुनि
चन्देल राजा मदनन्त्रर्म देव के समय (११३०-११६५ ई.) में दिगम्बर धर्म उन्नत रुप से रहा था। खजुराहो के घंटाई के मन्दिर वाले शिलालेख से उस समय दिगम्बराचार्य नेमिचन्द्र का पता चलता है।'
दिगम्बर जैन धर्म का आदर था। बीजोलिया के श्री पार्श्वनाथ जी के मन्दिर को दिगम्बर मुनि पानन्दि और शुभचन्द्र के उपदेश से पृथ्वीराज ने मोराकुरी गाँव और सोमेश्वर राजा ने रेवाण नामक गाँव भेंट किये थे।
चित्तौड़ का जैनकति स्तम्भ वहाँ पर दिगम्बर जैन धर्म की प्रधानता का द्योतक है। सम्राट कुमारपाल के समय वहाँ पहाड़ी पर बहुत से दिगम्बर जैन (मुनि)
दिगम्बर जैनाचार्य श्री धर्मचन्द्र जी का सम्मान और विनय महाराणा हप्पीर किया करते थे।
झांसी जिले का देवगढ़ नामक स्थान भी मध्यकाल में दिगम्बर मुनियों का केन्द्र था। वहाँ पाँचवों शताब्दि से तेरहवीं शताब्दि तक का शिल्प कार्य दिगम्बर धर्म की प्रधानता का द्योतक है।
१. ADJB.p.45. २. विको,, पा. ७, पृ. ११२ । ३. विको., भा. ५, पृ. ६८० । ४. ADJB.p.86. ५. उपदेशेन ग्रंथोऽयं गुणकीर्ति महामनेः । ___ कायस्थ पानाभेन रचितः पूर्व सूत्रतः। -यशोधर चरित्र ६. राइ था. १, पृ. ३६३१
७. It (जैन कीर्तिस्तम्भ) belongs to the Digamber Jains: many of whon sccm to have been upon the Hill in Kumarpal's time."
-मप्पास्मा, पृ. १३५ ८. "श्री धर्मचन्द्रो जनितस्यपट्टे हमीर भूपाल समर्थनीयः।।
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दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि