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रचना की थी। इस ग्रंथ की प्रशस्ति में लिखा है कि “वासनगर में शांति नामक राजा का राज्य था। वह नगर धनधान्य से परिपूर्ण था। सम्यग्दृष्टि जनों से, मुनियों के सपूह से और जैन पन्दिरों से विभूषित था। राजा शान्ति जिनशासनवत्सल, वीर
और नरपति संपूजित था। श्री पानन्दि जी ने अपने गुरु व अन्य रूप इन दिगम्बर मुनियों का उल्लेख किया है। वीरनन्दि', बलनन्दि, ऋषिविजयगुरु, माघनन्दि, सकलचन्द्र और श्रीनन्दि। इन्हीं ऋषियों की शिष्य परम्परा में उपरान्त वारानगर में निम्नलिखित दिगम्बराचार्यों का अस्तित्त्व रहा था - माघचन्द्र
सन् १०८३ ब्रह्मनन्दि
सन् १०८७ शिवनन्दि
सन् १०९१ विश्वचन्द्र
सन् १०९८ हरिनन्दि सिंहनन्दि) सन् १ ०९९ भावन्दि
सन् ११०३ देवनन्दि विद्याचन्द्र
सन् १९९३ सूरचन्द्र
सन् १११९ माघनन्दि
सन् ११२७ ज्ञाननन्दि
सन् ११३१ गंगकीत्ति
सन् ११४२
१. JAXX.353-354, २. “सिरिनिओ गुणसहिओ रिसिविजय गुरुति विक्खाओ।"
"तब संजमसंपण्णो बिक्खाओ माघनन्दिगुरु।" "णवणियमसीलकलिदो गुणवतो सयलचन्द गुरु।" "तस्सेव य वरसिम्सो णिम्मलवरणाणचरण संजुत्तो।" सम्माईसणसुद्धों सिरिणगुरुत्ति बिक्खाओ। १५६।" "पंचाचार समगगो छज्जीवदयाधरो विगदमोहो। हरिस-विसाय-विहूणा णामेणा य चौरणदिति ।।१५९।।" "सम्मत अभिगदमणौ णाणेण तह दंसणे चरित्ते य। परतंतिणियत्रमणों बलणंदि गुरुत्ति बिक्खाओ।।१६१ ।। तवणियमजोगजुत्तो उज्जुत्तो णाणदंसण चरित्ते।। आरम्भकरण रहियो णामणे य प३ मांदीति।।१६३ ।।"
"सिरि गुरुविजय सयासे सोऊणं आगमं सुपरिसुद्ध। "लिणसासपात्रच्छलो वीरो-गरवह संपूजिओ-वाराणयरस्त पतु गरोतमोखनि भूपालो सम्मदिष्टिजणोये मुणिगणणिवहेहिं मंडियं रस्मे। इत्यादि.
-जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, जैसा सं., भाग १, अंक ४, पृ. १५० ३. जैहि., पा. ६, अकंज-८, पृ.३१ व IA.XX.354.
दिगम्बरराव और दिगम्बर पनि
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