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तुरुन, विराटदेश, नामियाडदेश, टग, राट, नाग, चोल आदि देशों में विचरे थे। तौलव देश के पहावादीश्वर विद्वज्जनों और चक्रवर्तियों के मध्य उन्होंने प्रतिष्ठा पाई थी। तुरुब देश में षट्दर्शन के ज्ञाताओं का गर्व उन्होंने नष्ट किया था। नमियाड़ देश में जिन धर्म प्रचार के लिए नौ हजार उपदेशकों को उन्होंने नियुक्त किया था। दिल्ली पट्ट के वह सिंहासनाधीश थे। 'श्री देवरायराज, पुदिपालराय, रामनाथराय, बोमरसराय, कलपराय. पाण्डुराय आदि राजाओं ने उनके चरणों की वंदना की थी।' दिगम्बर जैनाचार्य श्री शुभचन्द्र
श्री शानभूषण जी के प्रशिष्य श्री शुभचन्द्राचार्य भी दिगम्बर मुनि थे। उनका पट्ट भी दिल्ली में रहा था। उन्होंने भी विहार करते हुये गजरात के वादियों का पद नष्ट किया था। वह एक अद्वितीय विद्वान और वादी थे। उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना को थी। पट्टावली में उनके लिये लिखा है कि वह "छन्द-अंलकारादिशास्त्र-समुद्र के पारगापी, शुद्धात्मा के स्वरुप चिन्तन करने हो से निन्द्रा को बिनष्ट करने वाले सब देशों में विहार करने से अनेक कल्याणों को पाने वाले, विवेक, विचार, चतुरता, गम्भीरता, धीरता, वीरता, और गणगण के समुद्र, उत्कृष्ट पात्र वाले, अनेक छात्रों का पालन करने वाले, सभी विद्वत्मण्डली में सुशोभित शरीर वाले, गौडवादियों के अन्धकार के लिये सूर्य के से, कलिंगवादिरूपी मेघ के लिये वायु के से, कर्णाटवादियों के प्रथम वचन खण्डन करने में परम समर्थ, पूर्ववादी रुपी मातंग के लिए सिंह के से, तौलवादियों को विडम्बना के लिए वीर, गुर्जरवादी रुपी समुद्र के लिए अगस्त्य के से, पालववादियों के लिये पस्तकशूल, अनेक अभिमानियों के गर्व का नाश करने वाले, स्वसमय तथा परस्समय के शास्त्रार्थ को जानने वाले और महाव्रत अंगीकार करने वाले थे।"र वारानगर का दिगम्बर संघ
उज्जैन के उपरान्त दिगम्बर मुनियों का केन्द्र विन्धायचल पर्वत के निकट स्थित वारानगर नापक स्थान हो गया था। वारा प्राचीन काल से ही जैन धर्म का एक गढ़ था। आठवीं या नवीं शाताब्दि में वहाँ श्री मनन्दि मनि ने 'जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति' की
१. जैसिमा,, भाग १, किरण ४, पृ. ४८-४९। २. जैसिभा., भा. १, कि.४, पृ. ४९-५० ।
"छन्दालंकारादि-शास्त्रसरित्पतिपारप्राप्तानां शुद्धचिद्रूपचिंतन विनाशिनिद्राणां, सर्वदेशविहारावाप्तानेकभद्रणां, विवेकविचार-चातुर्य्यगुणगणसमुद्राणां, उत्कृष्टपात्राणां, पालितानेक-श्च्छात्राणां, विहितानेकोत्तमपात्राणाम् सकलविद्वज्जनसभाशोभितगात्राणां, गौडवादितमः सूर्य, कलिंगवादिजलदरादागंति, कर्णाटवायिडम्बनवीर गुर्जर बादिसिन्धुकुम्भोदभव, मालववादिमस्तकशूल, जितानेकाखवंगर्वत्राटन बज्रधराणां, ज्ञानसकलस्वसमयपरसमय-शास्त्रार्थानां, अंगीकृतमहावतानाम्।" (94)
दिगम्परत्व और दिगम्बर मुनि