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________________ आदि को कविवर आशाधर ने जैन सिद्धान्त और साहित्य ज्ञान में निपुण बनाया था। नालछा उस समय जैन धर्म का केन्द्र था।' श्वेताम्बर ग्रन्थ “चतुर्विशति प्रबन्ध में लिखा है कि उज्जैनी में विशालकीर्ति नामक दिगम्बराचार्य के शिष्य मदनकोर्ति नाम के दिगम्बर साधु थे। उन्होंने वादियों को पराजित करके 'महाप्रामाणिकपदवी पाई थी और कर्णाटक देश में जाकर विजयपुर नरेश कुन्तिभोज के दरबार में आदर पाया था और अनेक विद्वानों को पराजित किया था, किन्तु अन्त में वह मनिपद से भ्रष्ट हो गए थे। गुजरात के शासक और दिगम्बर पनि मालवा के अनुरूप गुजरात भी दिगम्बर जैन मनियों का केन्द्र था। अंकलेश्वर में भतबलि और पुष्पदन्ताचार्य ने दिगम्बर आगम ग्रंथो की रचना की थी। गिरि नगर के निकट को गुफाओं में दिगम्बर मुनियों का संघ प्राचीन काल से रहता था। भृगुकच्छ भी दिगम्बर जैनों का केन्द्र था। गुजरात में चालुक्य, राष्ट्रकूद आदि राजाओं के समय में दिगम्बर जैन धर्म उन्नतशील था। सोलंकियो की राजधानी अहिलपुरपट्टन में अनेक दिगम्बर मुनि थे। श्रीचन्द्र मुनि ने वहीं ग्रंथ रचना की थी। योगचन्द्र मुनि' ओर मुनि कनकामर भी शायद गुजरात में हुए थे। ईडर के दिगम्बर साधु प्रसिद्ध थे। सोलंकी सिद्धराज ने एक वाद सभा कराई थी, जिसमें भाग लेने के लिये कर्णाटक देश से कुमुदचन्द्र नामक एक दिगम्बर जैनाचार्य आये थे। दिगम्बराचार्य नग्न ही पाटन पहुंचे थे। सिद्धराज ने उनका बड़ा आदर किया था। देवसरि नामक श्वेताम्बराचार्य से उनका वाद हुआ था। इस उल्लेख से स्पष्ट है कि उस समय भी दिगम्बर जैनों का गुजरात में इतना महत्त्व था कि शासक राजकुल का भी ध्यान उनकी ओर आकृष्ट हुआ था। दिगम्बराचार्य ज्ञानभूषण गुर्जर, सौराष्ट्र आदि देशों में जिन धर्म प्रचार श्री दिगम्बर भट्टारक ज्ञानभूषण जो द्वारा हुआ था। अहीर देश में उन्होंने ऐलक पद धारण किया था और वाग्वर देश में महाव्रतों को उन्होंने अंगीकार किया था। विहार करते हुये वह कर्णाटक, तौलव, तिलंग, द्रविड़, महाराष्ट्र, सौराष्ट्र, रायदेश, भेदपाट, पालक, मेवात, कुरुजांगल, १. भातारा., भाग १, पृ. १५७ व सागार. भूमिका, पृ. ९ । २. जैहि., भा. ११, पृ. ४८५ । ३. वीर, वर्ष १.प.६३७। ४. वीर, वर्ष १, पृ. ६३८ । ५. विको., था. ५, पृ. १०५ । दिगम्वरत्व और दिगम्बर मुनि (93)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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