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सन् ८२१ ई.
विद्यानन्दि
सन् ७५१ ई. रामचन्द्र
सन् ७८३ ई. रामकीर्ति
सन् ७९० ई. अभयचन्द्र नरचन्द्र
सन् ८४० ई. मनचन्द्र
स. ८५९ ई. हरिनन्दि
सन् ८ ८२ ई. हरिचन्द्र
सन् ८९१ ई. महीचन्द्र
सन् ९१७ ई. माषचन्द्र
सन् १३३ ई. लक्ष्मीचन्द्र
सन् ९६६ ई. गुणकीर्ति
सन् ९७० ई. गुणचंद्र
सन् ९९१ ई. लोकचन्द्र
सन् १००९ई. श्रुतकीर्ति
सन् १०२२ ई. पावचन्द्र
सन् १०३७ ई. महीचन्द्र
सन् १०५८ ई. आपके संघ में दिगम्बर मुनियों की संख्या अधिक थी और आपके धर्मोपदेश के द्वारा धर्म प्रभावना विशेष हुई थी।
इनकी उपाधियाँ त्रिविध विधेश्वरवैयाकरणभास्कर-महामंडलाचार्यतर्कवागीश्वर थो। इनके विहार द्वारा खूब प्रभावना हुई। बाद के परमार राजाओं के समय में दिगम्बर मुनि ____ मालवा के परमार राजाओं में विन्ध्यवर्मा का नाम भी उल्लेखनीय है। इस राजा के राजकाल में प्रसिद्ध जैन कवि आशाधर ने ग्रंथ रचना की थी और उस समय कई दिगम्बर मुनि भी राजसम्पान पाये हुये थे। इनमें मुनि उदयसेन और मुनि मदनकीर्ति उल्लेखनीय है। मुनि मदनकीर्ति ही विन्ध्यवर्मा के पुत्र अजूनदव के राजगुरु पदनोपाध्याय अनुमान किये गये हैं। इन्हें और मुनि विशलकोर्ति, मुनि विनयचन्द्र
१. ईडर से प्राप्त पावली में लिखा है कि "इन्होंने दस वर्ष विहार किया था और यह स्थिर व्रती थे।"-दिजे., वर्ष १४, अंक १०, पृ. १७-२४
२. दिजे,, वर्ष १४, अंक १०, पृ. १७-२४।
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दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि