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________________ मनन करना चाहिये। रचना सरल और सुखसाध्य होने पर भी बड़ी गंभीर और मधुर है। संस्कृत भाषा पर इनका अच्छा अधिकार था । ' 'नीतिवाक्यामृत' आदि ग्रंथों के रचयिता दिगम्बराचार्य श्री सोमदेव सूरि श्री अमितगति आचार्य के समकालीन थे। उस समय इन दिगम्बराचार्यों द्वारा दिगम्बर धर्म की खूब प्रभावना हो रही थी। २ राजाभोज और दिगम्बर मुनि भुज के समान राजाभोज के दरबार में भी जैनों को विशेष सम्मान प्राप्त था। भोज स्वयं शैव था, परन्तु 'वह जैनों और हिन्दुओं के शास्त्रार्थ का बड़ा अनुरागी था।' श्री प्रभाचन्द्राचार्य का उसने बड़ा आदर किया था। दिगम्बर जैनाचार्य श्री शांतिसेन ने भोज की सभा में सैकड़ों विद्वानों से वाद करके उन्हें परास्त किया था।' एक कवि कालिदास राजाभोज के दरबार में भी थे। कहते हैं कि उनकी स्पर्द्धा दिगम्बराचार्य श्री मानतुंग जी से थी। उन्हीं के उकसाने पर राजा भोग में मानतुंगाचार्य को अड़तालीस कोठों के भीतर बन्द कर दिया था, किन्तु श्री भक्तामर स्तोत्र' की रचना करते हुये वह आचार्य अपने योगबल से बन्धनमुक्त हो गए थे। इस घटना से प्रभावित होकर कहते हैं, राजाभोज जैन धर्म में दीक्षित हो गये थे, किन्तु इस घटना का समर्थन किसी अन्य श्रोत से नहीं होता। श्री ब्रह्मदेव के अनुसार 'द्रव्यसंग्रह' के कर्ता श्री नेमिचन्द्राचार्य भी राजाभोज के दरबार में थे।' श्री नयनन्दी नामक दिगम्बर जैनाचार्य ने अपना "सुदर्शन चरित्र" राजाभोज के राजकाल में समाप्त किया था। उज्जैनी का दिगम्बर संघ भोज ने अपनी राजधानी उज्जैनी में उपस्थित की थी। उस समय भी उज्जैनी अपने "दिगम्बर जैन संघ के लिए प्रसिद्ध थी। उस समय तक संघ में निम्न आचार्य हुए थे ७ अनन्तकीर्ति धर्मनन्दि ९. विको. भा. २, पृ. ६४ । 7 २. विर, पृ. ११५ । सन् ७०८ई. सन् ७२८ई. ३. भाभारा, भाग १, पृ. ११८-१२१ । ४. भक्तामर कथा, जैत्र, पृ. २३९ । ५. सं. पृ. ९ वृत्ति । ६. मत्राजैस्मा, भूमिका, पू. २० । ७. जैहि. भा. ६, अंक ७-८ पृ. ३०-३१ दिगम्बरस्या और दिगम्बर मुनि (91)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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