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________________ बनारस के राजा भीमसेन जैनधर्मानुयायी थे और वह अन्त मे पिहिताश्रव नामक जैनमुनि हुये थे।' मथुरा के रणकेतु नापक राजा जैन धर्म का भक्त था। वह अपने भाई गुणवर्मा सहित नित्य जिनपूजा किया करता था। आखिर गुणवर्मा को राज्य देकर वह जैन पुनि हो गया था। सूरीपूर (जिला आगरा) का राजा जितशत्रु भी जैनी था। वह बड़े-बड़े विद्वानों का आदर करता था। अन्त में वह जैन मुनि हो गया था और शान्तिकोर्ति के नाप से प्रसिद्ध हुआ था। मालवा के परमारवंशी राजाओं में पुञ्ज और भोज अपनी विद्यारसिकता के लिये प्रसिद्ध है। उनको राजधानी धार नगरी विद्या केन्द्र थी। मुज के दरबार में धनपाल, प्यगुप्त, धनञ्जय, हलायुद्ध आदि अनेक विद्वान थे। पञ्जनरेश से दिगम्बर जैनाचार्य पहासेन ने विशेष सम्मान पाया था। मुञ्ज के उत्तराधिकारी सिंधु राज के एक सापन्त के अनुरोध पर उन्होंने 'प्रद्युम्न चरित' काव्य की रचना की थी। कवि धनपाल का छोटा भाई जैनाचार्य के उपदेश से जैन हो गया था, किन्तु धनपाल को जैनों से चिढ थी। आखिर उनके दिल पर भी सत्य जैन धर्म का सिक्का जम गया और वह भी जैनी हो गये थे। दिगम्बर जैनाचार्य श्री शुभचन्द्र जी राजा मुञ्ज के समकालीन थे। उन्होनें राज का पोह तयागकर दिगम्बरी दीक्षा ग्रहण की थी।" राजा पुञ्ज के समय में ही प्रसिद्ध दिगम्बरचार्य श्री अमितगति जी हुये थे। वह माथुर संघ के आचार्य माधवसेन के शिष्य थे। 'आचार्यवर्य अमितगति बड़े भारी विद्वान् और कवि थे। इनको असाधारण विद्वता का परिचय पाने को इनके ग्रथों का १. जैप्र., पृ. २४२। २. पूर्व.। ३. पूर्व., पृ. २४१ । ४. भप्रारा. पा. १, पृ. १००। ५. मप्राजैस्मा., भूमिका, पृ. २०। ६. भभारा., भा. १, पृ. १०३-१०४। ७. मजेड.. पृ.५४-५५ । (90) दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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