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मालकट (मलय देशों में वह बताता है कि "कई मौ टेल पंदिर और असंख्य विरोधी है, जिनर्म अधिकतर निग्रंथ लोग है।
इस प्रकार ह्वेनसांग के भ्रमण-वृतान्त से उस समय प्रायः सारे भारतवर्ष में दिगम्बर जैन मुनि निर्बाध बिहार और धर्म प्रचार करते हुय मिलते हैं।
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| [१९] मध्यकालीन हिन्दू राज्य में दिगम्बर मुनि ।
"श्री धाराधिप-भोजराज-मुकुट-प्रोताश्मरश्मिच्छटाच्छाया-कुंकम-पंक-लिप्त-चरणाम्भोजात-लक्ष्मीधवः। न्यायाजाकरमण्डने दिनमणिश्शब्दाज-रोदोमणिस्थेयात्पण्डित-पुण्डरीक तरणि श्रीमान्प्रभाचन्द्रमाः।।"
-चन्द्रागिरि शिलालेख राजपूत और दिगम्बर मुनि
हर्ष के उपरान्त उत्तर भारत में कोई एक सम्राट न रहा, बल्कि अनेक छोटे-छोटे राज्यों में यह देश विभक्त हो गया। इन राज्यों में अधिकांश राजपूतों के अधिकार में थे और इनमें दिगम्बर पनि निर्बाध विचर कर जनकल्याण करते थे। राजपूतों में अधिकांश जैसे चौहान, पड़िहार आदि एक समय जैन धर्म के पक्त थे और उनके कुलदेवता चक्रेश्वरी, अम्बा आदि शासन देवियाँ थी।
उत्तर-भारत में कन्नौज को राजपूत-काल में भी प्रधानता प्राप्त रही हैं। वहाँ का राजाभोज परिहार (८४०-९० ई.) सारे उत्तर भारत का शासनाधिकारी था। जैनाचार्य खप्पसूरि ने उसके दरबार में आदर प्राप्त किया था।
श्रावस्ती, पथुरा, असाईखेड़ा, देवागढ़, वारानगर, उज्जैन आदि स्थान उस समय भी जैन केन्द्र बने हुये थे। ग्यारहवीं शताब्दी तक श्रावस्ती में जैन धर्म राष्ट्र धर्म रहा था। वहाँ का अन्तिम राजा सुहृद्ध्वज था। उसके संरक्षण में दिगम्बर मुनियों का लोककल्याण में निरत रहना स्वाभाविक है।
१. हुमा. पृ. ५७४ २. वीर, वर्ष, ३ पृ. ४७२ - एक प्राचीन जैन गुटका में यह बात लिखी हुई है। ३. भाइ. पृ. १०८ व दिजे. वर्ष २३, पृ.८४ । ४. संप्रास्मा पृ.६५
दिगम्बत्व और दिगम्बर मुनि