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ग्वालियर में कच्छपघाट (कछवाहे) और पड़िहार राजाओं के समय में दिगम्बर जैन धर्म उन्नत रहा था। ग्वालियर किले को नग्न जैन मूर्तियाँ इस व्याख्या की साक्षी हैं। खारानगर के बाद दिगम्बर मुनियों का केन्द्र स्थान ग्वालियर हुआ था और वहाँ के दिगम्बर मुनियों में सं. १२९६ में आचार्य रत्नकोर्ति प्रसिद्ध थे। वह स्याद्वाद विद्या के समुद्र, बालब्रह्मचारी, तपसी और दयालु थे। उनके शिष्य नाना देशों में फैले हुये थे।
मध्यप्रान्त के प्रसिद्ध हिन्दू शासक कलचूरी भी दिगम्बर जैन धर्म के आश्रयदात
थे।
बंगाल में भी दिगम्बर धर्म इस समय मौजूद था, यह बात जैन कथाओं से स्पष्ट है। 'भक्तपरकथा' में चम्पापुर का राजा कर्ण जैनी लिखा है। भगवान महावीर की जन्मनगरी विशाला का राजा लोकपाल जैनी था। पटना का राजाधात्रीवाहन श्री शिवभूषण नामक मुनि के उपदेश से जैनी हुआ था। गौड़ देश का राजा प्रजापति बौद्धधर्मी था, परन्तु 'जैन साधु मतिसागर की बाद शक्ति पर मुग्ध होकर प्रजा सहित जैनी हुआ था। इस समय का जो जैन शिल्प बंगाल आदि प्रान्तों में मिलता है, से उक्त कथाओं का समर्थन होता है।
उस
आज तक बंगाल में प्राचीन श्रावक 'सराक' लोगों का बड़ी संख्या में मिलना वहाँ पर एक समय दिगम्बर जैन धर्म की प्रधानता का द्योतक है।
इस प्रकार मध्यकाल के हिन्दु राज्यों में प्रायः समग्र उत्तर भारत में दिगम्बर मुनियों का विहार और धर्मप्रचार होता था। आठवीं शताब्दि के उपरान्त जब दक्षिण भारत में दिगम्बर जैनों के साथ अत्याचार होने लगा, तो उन्होंने अपना केन्द्रस्थान उत्तर भारत की ओर बढ़ाना शुरु कर दिया था। उज्जैन, वारानगर, ग्वालियर आदि स्थानों का जैन केन्द्र होना, इस ही बात का द्योतक है। ईस्वीं ९-१० शताब्दि में जब अरब का सुलेमान नामक यात्री भारत में आया तो उसने भी यहाँ नंगे साधुओं को एक बड़ी संख्या में देखा था। सारांशतः मध्यकालीन हिन्दू काल में दिगम्बर मुनियों का भारत 'बाहुल्य था।
३
में
१. जैहि. भा. ६, अंक ७-८, पृ. २६ ।
२. जैत्र, पृ. २४० - २४३ ।
३. "In India there are persons who in accordance with their profession. wander in the woods and mountains and rearely communicate with the rest of mankind.....Some of them go about naked."
-Sulaiman of Arab, Elliot, l.p.6.
दिगम्बरात्ब और दिगम्बर मुनि
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