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________________ शास्त्रार्थ होना प्रारम्भ हो गये थे। हाई के काल में ऊो वह बरस कि समाज में विद्वान ही सर्वश्रेष्ठ पुरुष गिना जाने लगा।' इन विद्वानों में दिगम्बर मुनियों का भी सपात्र था। सम्राट हर्ष के राजकवि बाप्य ने अपने ग्रंथों में उनका उल्लेख किया है। वह लिखता है कि “राजा जब गहन जंगल मे जा पहुंचा तो वहाँ उसने अनेक तरह के तपस्वी देखे। उनमें नान (दिगम्बर) आर्हत (जैन) साधु भी थे। हर्ष ने अपने महासम्मेलन में उन्हें शास्त्रार्थ के लिये बुलाया था और वह एक बड़ी संख्या में उपस्थित हुये थे। इससे प्रकट होता है कि उस समय हर्ष की राजधानी के आस-पास भी जैन धर्म का प्राबल्य था, वैसे तो वह सारे भारत में फैला हुआ था। उज्जैन का दिगम्बर जैन संघ अब भी प्रसिद्ध था और उसमें तत्कालीन निम्न दिगम्बर जैनाचार्य मौजूद थे १. श्री दिगम्बर जैनाचार्य महाकीर्ति, सन् ६२९ को आचार्य हुये २. श्री दिगम्बर जैनाचार्य विष्णुनन्दि सन् ६४७ को आचार्य हुये ३. श्री दिगम्बर जैनाचार्य श्रीभूषण सन् ६६९ को आचार्य हुये ४. श्री दिगम्बर जैनाचार्य श्रीचन्द्र सन् ६७८ को आचार्य हुये ५. श्री दिगम्बर जैनाचार्य श्रीनन्दि सन् ६९२ को आचार्य हुये ६. श्री दिगम्बर जैनाचार्य देशभूषण सन् ७०८ को आचार्य हुये सम्राट हर्ष के सपय में (७ बी श.) चौन देश से ह्वेनसांग नामक यात्री भारत आया था। उसने भारत और भारत के बाहर दिगम्बर जैन मुनियों का अस्तित्त्व बतलाया है। वह उन्हें निर्गंध और नंगे साधु लिखता है तथा उनकी केशलुञ्चन क्रिया का भी उल्लेख करता है। वह पेशावर की ओर से भारत में घुसा था और वहीं सिंहपुर में उसने नंगे जैन मुनियों को पाया था। इसके उपरान्त पंजाब और मथुरा, स्थानेश्वर, ब्रह्मपुर, आहिक्षेत्र, कपिथ, कन्नौज, अयोध्या, प्रयाग, कौशांबी, बनारस, श्रावस्ती इत्यादि मध्यप्रदेशवतों नगरों में यद्यपि उसने दिगम्बर मुनियों का पृथक उल्लेख नहीं किया है, परन्तु एक साथ सब प्रकार के साधुओं का उल्लेख करके उसने उनके अस्तित्व को इन नगरों में प्रकट कर दिया है। मथुरा के सम्बन्ध में वह लिखता है १. भाइ,,पृ. १०३-१०४। २. दिमु., पृ. २१ । ३. Hari., P.270. ४. जैहि., ए. भा. ६, अंक ७-८, पृ. ३० व .A.,'xx-352 ५. "Hisun Tsang found thern (Jains) spread through the whole of India and even beyond its boundarics,-"AISJ.P.45 विशेष के लिये हेनसांग का भारत भ्रमण (इण्डियन प्रेस लि.) देखो। 6. "The Li-hi (Nirgranthas) distinguish themselves by leaving their bodics nalcd & puling oul their hair, Their skin is all cracked thcir scet are hard & chapped like colting trees." -(S1. Julien, Vicnna.p.224) ७. हुमा., पृ. १४३। दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि (87)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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