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________________ सारांशतः गुप्तकाल में दिगम्बर पुनियों का बाहुल्य था और वे सारे देश में । घूम-घूम कर धर्मोद्योत कर रहे थे। - हर्षवर्द्धन तथा ह्वेनसांग के म समय में दिगम्बर मुनि । "बौद्धों और जैनियों की भी संख्या बहुत अधिक थी।...बहुत से प्रान्तीय राजा भी इनके अनुयायी थे। इनके धार्मिक सिद्धान्त और रीतिरिवाज भी तत्कालीन समाज पर पर्याप्त प्रभाव डाले हुये थे। इनके अतिरिक्त तत्कालीन समाज में साधुओं, तपस्वियों, भिक्षुओं और यतियों का एक बड़ा भारी समुदाय था, जो उस समय के समाज में विशेष महत्त्व रखता था।....(हिन्दुओं में) बहुत से साधु अपने निश्चित स्थानों पर बैठे हुये ध्यान-समाधि करते थे, जिनके पास भक्त लोग उपदेश आदि सुनने आया करते थे। बहुत से साधु शहरों व गाँवों में घूम-घूमकर लोगों को उपदेश व शिक्षा दिया करते थे। यही हाल बौद्ध भिक्षुओं और जैन साधुओं का भी था।....साधारणतः लोगों के जीवन को नैतिक एवं धार्मिक बनाने में इन साधुओं, यतियों और भिक्षुओं का बड़ा भारी भाग था।"१ -कृष्णचन्द्र विद्यालंकार गुप्त साम्राज्य के नष्ट होने पर उत्तर- भारत का शासन योग्य हाथों में न रहा। परिणाम यह हुआ कि शीघ्र ही हूण जाति के लोगों ने भारत पर आक्रमण करके उस पर अधिकार जमा लिया। उनका राज्य सभी धर्मों के लिये थोड़ा-बहुत हानिकारक हुआ, किन्तु यशोवर्मन राजा ने संगठन करके उन्हें परास्त कर दिया। इसके बाद हर्षवर्धन नापक सम्राट एक ऐसे राजा मिलते हैं जिन्होंने सारे उत्तर- भारत में प्रायः अपना अधिकार जमा लिया था और दक्षिण-भारत को हथियाने को भी जिन्होंने कोशिश की थी। इनके राजकाल में प्रजा ने संतोष की सांस ली थी और वह धर्म-कर्म की बातों की ओर ध्यान देने लगी थी। गप्तकाल से ही ब्राह्मण धर्म का पनरुत्थान होने लगा था और इस समय भी उसकी बाहुल्यता थी, किन्तु जैन और बौद्ध धर्म भी प्रतिभाशाली थे। धार्मिक जागृति का वह उन्नत काल था। गप्तकाल से जैन, बौद्ध और ब्राह्मण विद्वानों में वाद और १. हर्षकालीन भारत-"त्यागभूमि', वर्ष २, खण्ड १, पृ. ३०१। (86) दिगम्वरत्व और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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