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________________ कुमारी पर्वत पर के शिलालेखों से यह भी प्रकट है कि कलिंग में जैन धर्म दसवीं शताब्दि तक उन्नतावस्था पर था। उस सपय वहाँ पर दिगम्बर जैन मुनियों के विविध संघ विद्यमान थे, जिनमें आचार्य यशन्दि, आचार्य कुलचन्द्र तथा आचार्य शुभचन्द्र मुख्य साधु थे।' इस प्रकार कलिंग में दिगम्बर जैन धर्म का बाहुल्य एक अतीव प्राचीन काल से रहा है और वहाँ पर आज भी सराक लोग एक बड़ी संख्या में हैं, जो प्राचीन श्रावक हैं।' उनका अस्तित्त्व इस बात का प्रमाण है कलिंग में जैनत्व की प्रधानता आधुनिक समय तक विद्यमान रही थी। SONN .. . .. .. | [१७] गुप्त साम्राज्य में दिगम्बर मुनि । : The capital of inc Cupla emperors becanic the ccnirc of Brahmanical culture; but the masses followed the religions traditions of their forclathers, and Buddhist Jain monasteries continued to be public schools and universities for the greater part of India." -E,B.Havell, HARI,, p. 156 इति सो चिन्तयित्वान गुहसीवो नराधिपो। पवाजेसी सकारह निगण्ठे ते असेसके।।८९।। ततो निगण्ठा सव्वेपि धतसित्तानला यथा। कोग्गिजलिता गच्छं पुरं पाटलिपुतकं! |९० ।। तत्थ राजा महातेजो जम्बुदीपस्स हस्सरो। पण्डु नामोतदा आसि अनन्त बलवाहनो।।११।। कोधन्धोल्य निगण्ठा ते सल्वे पेसुज्जकास्का। उपसंकम्मराजानं इदं वचनमबत्रु ।।१२।। इत्यादि "दाठा.,पृ. १३-१४ १. बंबिओ जैस्मा,,पृ. ९४-९६ । २. बंदिओ जैस्मा.,पृ. १०१-१०४। दिगम्बरत्य और दिगम्बर पनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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