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राजा दशरथ अथवा यशधर के पुत्र पाँच सौ साथियों सहित दिगम्बर मुनि होकर कलिंग देश से ही मुक्त हुये थे तथा वह पवित्र कोटिशिला भी उसी कलिंग देश में हैं, जिसको श्री राम-लक्ष्मण ने उठाकर अपना बाहवल प्रकट किया था और जिस पर से एक करोड दिगम्बर मनि निर्वाण को प्राप्त हये थे। सारांशतः एक अतीव प्राचीन काल से कलिंग देश दिगम्बर मुनियों के पवित्र चरण-कमलों से अलंकृत हो चुका है। __इक्ष्वाकुवंश के कौशलदेशीय क्षत्रिय राजाओं के उपरान्त कलिंग में हरिवंशो क्षत्रियों ने राज्य किया था। भगवान महावीर ने सर्वज्ञ होकर जब कलिंग मे आकर धर्मोपदेश दिया तो उस समय कलिंग के जितशुत्र नामक राजा दिगम्बर मुनि हो गये और भी अनेक दिगम्बर मुनि हुये थे।
तदोपरान्त दक्षिण कौशलवर्ती चेदिराज के वंश के एक महापुरुष ने कलिंग पर अधिकार जमा लिया था। ईस्वी पर्व द्वितीय शताब्दि में इस देश में ऐल. खारवेल नामक राजा अपने भुजविक्रम, प्रताप और धर्म-कार्य के लिये प्रसिद्ध था। यह जैन धर्म का दृढ़ उपासक था। उसने सारे भारत को दिग्विजय की थी। वह मगध के सुगवंशी राजा को हराकर 'कलिग जिन' नामक अर्हत-मूर्ति को वापिस कलिंग ले आया था। दिगम्बर मनियों को वह भक्ति और विनय करता था। उन्होंने उनके लिये बहुत से कार्य किये थे। कुमारी पर्वत पर अर्हत् भगवान की निषधा के निकट उन्होंने एक उन्नत जिन प्रासाद बनवाया था तथा पचहत्तर लाख मुद्राओं को व्यय करके उस पर वैडूर्यरत्नजडित स्तम्भ खड़े करवाये थे। उनकी रानी ने भी जैन मंदिर तथा मुनियों के लिये गुफायें बनवाई थी, जो अब तक मौजूद हैं और भी न जानें उन्होनें दिगम्बर मुनियों के लिये क्या-क्या नहीं किया था।
उस समय पथरा, उज्जैनी और गिरिनर जैन ऋषियों के केन्द्र स्थान थे। खारवेल ने जैन ऋषियों का एक पहासम्मेलन एकत्र किया था। पथुरा, उज्जैनी, गिरिनार, काञ्चीपुर आदि स्थानों से दिगम्बर मुनि उस सम्मेलन में भाग लेने के लिये कुमारी पर्वत पर पहुंचे थे। बड़ा भारी धर्म महोत्सव किया गया था। बुद्धिलिंग, देव, धर्मसेन, नक्षत्र आदि दिगम्बर जैनाचार्य उस महासम्मेलन में
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१. "जसधर राहस्स सुवा पंचसयाभूब कलिंग देसम्म || कोटिसिल कोडि मुणि णिव्वाण गया णमो तेसि ।।१८।। -णिवाण-कांड गाहा २, हरिवंशपुराण (कलकत्ता संस्करण), पृ. ६२३ ३. JBORS, Vol.III, pp.434-484. ४. बेबिओं जैस्मा., पृ. ९१ ५. JHQ. Vol. IV.p.522. ६. "सुतदिसार्नु भनितम् तपसि-इसिन संघियन अरहत निसीदिया समीपे चोयथि सतिकंतुरिय उपादयति।।"
-JBORS, XIll. 236-237.
दिगम्मरत्व और दिगम्बर मुनि