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छत्रप नहपान के अतिरिक्त छत्रप रुद्रदमन का पुत्र रुद्रसिंह का भी जैन धर्म भुक्त होना संभव है। जूनागढ़ की 'अपरकोट' को गुफाओं में इसका एक लेख है, जिसका सम्बन्ध जैन धर्म से होना अनुमान किया जाता है। ये गुफायें जैन मुनियों के उपयोग में आती थीं।
इन उल्लेखों से यह स्पष्ट है कि उपयुक्त विदेशी लोगों में धर्म प्रचार करने के लिये दिगम्बर मुनि पहुंचे थे और उन्होंने उन लोगों के निकट सम्मान पाया था।
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- सम्राट ऐल खारवेल आदि ।
कलिंग नृप और दिगम्बर - मुनियों का उत्कर्ष
"नन्दराज-नीतानि कालिंग-जिनम्संनिवेसं... गहरतनान पडिहारेहि अङ्गमागध वसवु नयाति।"
(१२ वी पंक्ति) - "सुकति-समण-सुविहितानु च सतादिसानु जनितम् तपसि-इसिनं संघियनं अरहत निमीदिया समीपे पभरे बरकारू-समथनपतिहि अनेकयोजनाहिताहि प सि ओ सिलाहि सिंहपथ-गनि सिधुडाय निसयानि...घण्टा (अ) क (तो) चतरे वेडूरियगभे थंभे पतिठापयति"। (१५-१६ पंक्ति) -हाथी गुफा शिलालेख
कलिंग देश में पहले तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव के एक पुत्र ने पहले-पहले राज्य किया था। जब सर्वज्ञ होकर तीर्थंकर ऋषभ ने आर्यखण्ड में विहार किया तो वह कलिंग भी पहुंचे थे। उनके धर्मोपदेश से प्रभावित होकर तत्कालीन कलिंगराज अपने पत्र को राज्य देकर पुनि हो गये थे। बस कलिंग में दिगम्बर मुनियों का सद्भाव उस प्राचीन काल से है।
१. IA.XX.163.6. २. हरिवंशपुराण श्लो. ३-७, ११, श्लो. १४-७१ ।
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि