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________________ गये थे, क्योंकि वहाँ से इतने ही दिगम्बर मुनियों ने समाधिमरण किया था ये सब. मुनिश्री जम्बूस्वामी के शिष्य थे। जिस समय जम्बूस्वामी दिगम्बर मुनि हुये तो उस समय विद्युच्चर नामक एक नामी डाकू भी अपने पाँच सौ साथियों सहित दिगम्बर पुनि हो गया था। एक बार यह मुनि संघ देश-विदेश में विहार करता हुआ शाम को मथुरा पहुंचा। वहाँ महाउद्यान में वह ठहर गया। तदोपरान्त रात को उन मुनियों पर वहाँ महाउपसर्ग हुआ और उसके परिणामस्वरुप पुनियों ने साम्य भाव से प्राण त्याग दिये। इस महत्त्वपूर्ण घटना की स्मृति में ही वहाँ पाँच सौ एक स्तूप बना दिये गये थे । ' इस प्रकार न जाने कितने मुनि पुंगव उस समय भारत में विहार करके लोगो का हितसाधन करते थे, उनका पता लगा लेना कठिन है। नन्द- साम्राज्य में उनको पूरा-पूरा संरक्षण प्राप्त था। [१२] मौर्य सम्राट और दिगम्बर मुनि “भद्रबाहुवचः श्रुत्वा चन्द्रगुप्तो नरेश्वरः । अस्यैवयोगिनं पार्श्वे दधौ जैनेश्वरं तपः || ३८ ।। चन्द्रगुप्तमुनिः शीघ्रं प्रथमो दशपूर्विकाम। सर्वसंघाधिपोजातो विशाखाचार्यसंज्ञकः ।। ३९ ।। अनेन सह संघोपि समस्तो गुरुवाक्यतः । दक्षिणापथदेशस्थ पुत्राट विषयं ययौ ।।४०।। " - हरिषेण कथाकोष 'पउउधरेसु' चरियों चिणदिक्खं धरदि चन्द्रगुप्तो में । - त्रिलोक प्रज्ञप्ति 3 नन्द राजाओं के पश्चात् मगध का राजछत्र चन्द्रगुप्त नाम के एक क्षत्रिय राजपुत्र के हाथ लगा था। उसने अपने भुजविक्रम से प्रायः सारे भारत पर अधिकार कर १. अनेकान्त, वर्ष १, पृ. १३९ - १४१ । 'अथ विद्युच्चरो नाम्ना पर्यटन्निह सन्मुनिः । एकादशांगविद्यासामधीतो विदधत्तपः । अथान्यधुः सनिःसंगो मुनि पंचशतैर्वृतिः ॥ मथुरायां महोद्यान- प्रदेशेष्वगमन्मुदा । तदागच्छस वैलक्ष्यं भानुरस्ताचलं श्रितः । । इत्यादि । । " २. जैहि, भा १४, पृ. २१७ । ३. जैहि. ए., भा. ३, पृ. ५३१ । दिगम्बरत्व और दिसम्बर मु (71)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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