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पटना में बनवाये थे। पञ्चपहाड़ी (राजगृह) जैनों का प्रसिद्ध तीर्थ है। नन्द ने उसी के अनुरूप पाँच स्तूप पटना में बनावाये प्रतीत होते है। यह कार्य भी उनकी मुनि-भक्ति का परिचायक है।.
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जैन कथा ग्रन्थों से विदित है कि एक नन्द राजा स्वयं दिगम्बर जैन मुनि हो गये थे तथा उनके मंत्री शकटाल भी जैनी थे। शकटाल के पुत्र स्थूलभद्र भी दिगम्बर मुनि हो गये थे। सारांश यह कि नन्द- साम्राज्य के प्रसिद्ध पुरुषों ने स्वयं दिगम्बर मुनि, होकर तत्कालीन भारत का कल्याण किया था और नन्द राजा जैनों के सरंक्षक
शिशुनाग वंश के अन्त और नन्द राज्य के आरम्भ काल में जम्बू स्वामी अतिम केवली सर्वज्ञ ने नग्न वेष में सारे भारत का भ्रमण किया था। कहते हैं कि बंगाल के कोटिकपुर नामक स्थान पर उन्होंने सर्वज्ञता प्राप्त की थी। उनका बिहार बंगाल के प्रसिद्ध नगर पुं ड्रबर्द्धन, ताम्रलिप्त आदि में हुआ था। एक बार वह मथुरा भी पहुँचे थे। अन्त में जब वह राजगृह विपुलाचल से मुक्त हो गये, तो मथुरा में उनकी स्मृति में एक स्तूप बनाया गया था।
मथुरा जैनों का प्राचीन केन्द्र था। वहाँ भगवान् पार्श्वनाथ जी के समय का एक स्तूप मौजूद था। इसके अतिरिक्त नन्दकाल में वहाँ पाँच सौ एक स्तूप और बनाये
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. "Sir G. Grierson informs me that the Nandas were reputed to be bitter enemies of the Brahmans...the Nandas were Jainsa and therefore hatefuls to the Brahamans.. The supposition that the last Nanda was cither a Jaina or Buddhist is strengthened by the face that one from of the local tradition attributed to him the erection of the Panch Pahari at Patna, a group of ancient stupas, which be either Jaina of Buddhist." –E][l,p,44
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उनका जैन होना ठीक है, क्योंकि नन्दवर्द्धन के जैन होने में संदेह नहीं है और "मुद्राराक्षस" नन्दमंत्री आदि को जैन प्रकट करता है।
२. हरिषेण कथा कोष तथा आराधना कथा कोष देखो।
३. सातवीं गुजराती साहित्य परिषद रिपोर्ट (पृष्ठ ४१ ) तथा “भद्रबाहु चरित्र" (पृष्ठ ४१) में स्थूलभद्रादि को दिगम्बर मुनि लिखा है । (रामल्यस्थल भद्राख्य स्थूलाचार्यादियोगिनः ।}
४. "Nanda were Jains". CHI, Vol.I., p. 164.
The nine kings of the Nanda dynasty of Magadha were patrons of the Order (Sangha of Mahavira). " -HARI, p.59
५. "In Ketikapur Jambu attained emancipation ( Omniscience) - वीर, वर्ष ३ पृ. ३७
६. अनेकान्त, वर्ष १, पृ. १४१ । "मगधदिमहादेश
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मधुरादिपुरीरस्तथा । कुर्वन् धर्मोपदेश स केवलज्ञानलोचनः
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वर्षाष्टादशपर्यन्तं स्थितस्तत्र जिनधिपः ततो जगाम निर्वाणं केवली विपुलाचलात् ||१||
- जम्बूस्वामी चरित् ७. JOAM,13.
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुर्ति