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लिया था और “पौर्य", नामक राजवंश की स्थापना की थी। जैन शास्त्र इस राजा को दिगम्बर मुनि श्रमणपति श्रुतकेवली भद्रबाहु का शिष्य प्रकट करते है।' यूनानी राजपूत मेगस्थनीज भी चन्द्रगुप्त को श्रमणभक्त प्रकट करता है। सम्राट चन्द्रगप्त ने अपने वृहत् साम्राज्य में दिगम्बर पुनियों के बिहार और धर्म प्रचार करने की सुविधा की थी। श्रमेणपत्ति भद्रबाहु के संघ को वह राजा बहुत विनय करता था। भद्रबाहु जी बंगाल देश के कोटिकपुर नायक नगर के निवासी थे। एक बार वहाँ श्रुतकेवली गोवर्द्धन स्वामी अन्य दिगम्बर मुनियों सहित आ निकले, भद्रबाहु उन्हीं के निकट दीक्षित होकर दिगम्बर मुनि हो गये। गोवर्द्धन स्वामी ने संघ सहित गिरनारजी की यात्रा का उद्योग किया था। इस उल्लेख से स्पष्ट है कि उनके समय में दिगम्बर मुनियों को विहार करने की स्विधा प्राप्त थी। भद्रबाह जी ने भी संघ सहित देश-देशान्तर में विहार किया था और वह उज्जैनी पहुंचे थे। वहीं से उन्होंने दक्षिण देश की ओर संघ सहित विहार किया था, क्योंकि उन्हें मालूम हो गया था कि उत्तरापथ में एक द्वादशवर्षीय विकराल दुष्काल पड़ने को है जिसमें पुनिचर्या का पालन दुष्कर होगा। सम्राट चन्द्रगुप्त ने भी इसी समय अपने पुत्र को राज्य देकर भद्रबाह स्वामी के निकट जिनदीक्षा धारण की थी और वह अन्य दिगम्बर पनियों के साथ दक्षिण भारत को चले गये थे। श्रवणबेलगोल का कटवप्र नामक पर्वत उन्हीं के कारण “चन्द्रगिरि" नाम से प्रसिद्ध हो गया है, क्योकि उस पर्वत पर चन्द्रगुप्त ने तपश्चरण किया था और वहीं उनका समाधि परण हुआ था।'
१. 'चन्द्रावदात्सतिश्चन्द्रवन्मोदकर्तृणाम्। चन्द्रगुप्तिनृपस्तल्चककच्यारुगुणोदयः ||७||२।।
ज्ञानविज्ञानपारीोजिमपूजापुरंदरः । चतुर्द्धा दान दक्षो यः प्रताप्रजित भास्करः ।।८।। पद.
"समासाद्य स सूरीशं (भद्राबाह) परीत्य प्रश्रयान्वितः। समभ्यर्च्य गुरोः पादावगंधसदकादिकैः ।।२६।।"
-भट्र. 2. "That Chandragupt was a member of the Jaina community is laken by their writers as a matter of course. and treared as a known fast. which needed neither argument nor demonstration. The documentary evidence to this effort is of comparatively early date, and apparenily alived frum all suspicion... 'The testimuny of Megasthense would likewise seem toimply thai Chandragupta sutimitled to the devotional catching of the Srananas as opposed to the duinnes of the bahnanas. (Siralo. XV.p.60) JRA Vol. IX.pp.175-176.
३. "तमालपत्रवत्तस्य देशोभूतपौण्डूवर्द्धनः ।"-"तत्र कोट्टपुरं रम्यं घोतते नराकखण्डवत।" 'भद्रबाहुरितिख्याति प्राप्तवान्बन्धुवर्गतः।" इत्यादि
-भद्र., पृ.१०-२३ ४. “चिकीर्ष नैमितीर्थेशयात्रां रैवतकाचले ।"
-भद्र.,पृ.१३ ५. भद्र,,पृ. २७-५१।
६. Jaina tradition avers that Chandragupta Maurya was aJains, and thal, whena gtreal twelve year's renting ocrurccd, he abdicated accompanied Dhadrababy, the last of the Suinis called Srutakvalins to the South, lived as an ascetic at Sravanabelgole in Mysore and ultimalely commiled Suicide by Starvation at thal place, where his name is still hellin rencobrance. In the second cdition of this book I rejccicd that tradition und dismissed the tale ak imaxinary histroy. But on reconsideration of the whole evidence and the objections urged against the credibility of the story. I am now dispused to belive that the tradition probably is true in its main outline and thal Chandragupla really abdicated and becanre a Jaina ascetic," Sir Vincient Snith. FIII, p., St.
दिगम्बास्य और दिगम्बर मुनि
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