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________________ ! शिष्यों सहित जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी और ये दिगम्बर मुनि होकर मुनियों के नेता हुए थे। देश देशान्तर में विहार करके इन्होंने खूब धर्मप्रभावना की थी। ' चौथे गणधर व्यक्त कोल्लंग सन्निवेश निवासी धनमित्र ब्राह्मण की वारुणी' नामक पत्नी की कोख से जन्मे थे। दिगम्बर पुनि होकर यह भी गणनायक हुये थे। पाँचवें सुधर्म नामक गणधर भी कोल्लग सन्निवेश के निवासी धम्पिल ब्राह्मण के सुपुत्र थे। इनकी माता का नाम भूद्दिला था। भगवान महावीर के उपरान्त इनके द्वारा जैन धर्म का विशेष प्रचार हुआ था। ३ छटे माण्डिक नामक गणधर मौर्व्याख्य देश निवारी धनदेव ब्राह्मण की विजया देवी स्त्री के गर्भ से जन्मे थे। दिगम्बर मुनि होकर यह वीर संघ में सम्मिलित हो गये थे और देश-विदेश में धर्मप्रचार किया था। सातवें गणधर मौर्यपुत्र भी पौर्याख्य देश के निवासी मौर्यक ब्राह्मण के पुत्र थे। इन्होंने भी भगवान महावीर के निकट दिगम्बरीय दीक्षा ग्रहण करके सर्वत्र धर्म प्रचार किया था। आठवें मर अकम्पन थे, जो मिथिलापुरी निवासी देव नामक ब्राह्मण की जयन्ती नामक स्त्री के उदर से जन्मे थे। इन्होंने भी खूब धर्मप्रचार किया था। नवें धवल नामक गणधर कोशलापुरी के वसुविप्र के सुपुत्र थे। इनकी माँ का नाम नन्दा था। इन्होंने भी दिगम्बर मुनि हो सर्वत्र विहार किया था। दसवें गणधर मैत्रेय थे। वह वस्सदेशस्थ तुगिंकाख्य नगरी के निवासी दत्त ब्राह्मण की स्त्री करुणा के गर्भ से जन्मे थे। इन्होंने भी अपने गण के साधुओं सहित धर्म प्रचार किया था। ग्यारहवें गणधर प्रभास राजगृह निवासी बल नामक ब्राह्मण की पत्नी भद्रा की कुक्षि से जन्मे थे और दिगम्बर मुनि तथा गणनायक होकर सर्वत्र धर्म का उद्योत करते हुए विचरे थे। ४ इन गणधरों की अध्यक्षता में रहे उपर्युक्त चौदह हजार दिगम्बर पुनियों ने तत्कालीन भारत का महान उपकार किया था। विद्या, धर्मज्ञान और सदाचार उनके सउद्योग से भारत में खूब फैले थे। जैन और बौद्ध शास्त्र यही प्रकट करते हैं "The Buddhist and Jaina texts tall us that the intinerant teachers of the time wandered about in the country, engaging themselves wherever They stoppd in serious discussion, on matters relating to religion, philosophy ethics morals and polity." 八章 (66) १. बृजेश, पृ. ६० - ६१ ॥ २. बृजेश पृ. ८ ३. बृजेश. पू. ८ । ४. बृजेश पृ. ८ । दिगम्बात्य और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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