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________________ १ २ ४ सामगामसुत से यह प्रकट है कि भगवान ने पावा से मोक्ष प्राप्त की थी। दीघनिकाय का “पासादिक सुत्त" भी इसी बात का समर्थन करता है। "संयुक्तनिकाय” से भगवान महावीर का संघसहित “मच्छिकाखण्ड" में विहार करना स्पष्ट है। ब्रह्मजालसुत्त में राजगृह के राजा अजातशत्रु को भगवान महावीर स्वामी के दर्शन के लिये लिखा गया है। "विनयपिटक" के महावग्ग ग्रंथ से भगवान महावीर का वैशाली में धर्म प्रचार करना प्रमाणित है। एक "जातक" में भगवान महावीर को “अचेलक नातपुत्त" कहा गया है। “महावस्तु" से प्रकट है कि अवन्ती के राजपुरोहित का पुत्र नालक बनारस आया था। वहाँ उसने निर्ग्रथ नातपुत्त (महावीर को) धर्मप्रचार करते पाया । ५ ६ ७ दीघनिकाय से स्पष्ट है कि कौशल के राजा पसेनदी ने निग्रंथ नातपुत (महावीर) को नमस्कार किया था। उसकी रानी मल्लिका ने निर्ग्रथों के उपयोग के लिये एक भवन बनवाया था।' सारांशतः बौद्ध शास्त्र श्री भगवान महावीर के दिगन्तव्यापी और सफल बिहार की साक्षी देते हैं! भगवान के बिहार और धर्म प्रचार से जैन धर्म का विशेष उद्योत हुआ था। जैन शास्त्र कहते हैं कि उनके संघ में चौदह हजार दिगम्बर मुनि थे। जिनमें ९९०० सधारण मुनि ३०० अंगपूर्वधारी मुनि, १३०० अवधिज्ञानधारी पुनि ९०० ऋद्धिविक्रिया युक्त, ५०० चार ज्ञान के धारी, ७०० केवलज्ञानी और ९०० अनुत्तरवादी थे। महावीर संघ के ये दिगम्बर मुनि दस गणों में विभक्त थे। और ग्यारह गणधर उनकी देख रेख करते थे । " इन गणधरों का संक्षिप्त वर्णन निम्न प्रकार है - (१) इन्द्रभूति गौतम, ( २ ) वायुभूति, (३) अग्निभूति, ये तीनों गणधर मगध देश के गौर्बर ग्राम के निवासी वसुभूति (शांडिल्य ) ब्राह्मण को स्त्री पृथ्वी स्थिण्डिला) और केसरी के गर्भ से जन्मे थे। गृहस्थाश्रम त्यागने के बाद ये क्रम से गौतम, गार्ग्य और भार्गव नाम से प्रसिद्ध हुए थे। जैन होने के पहले ये तीनों वेद धर्मपरायण ब्राह्मण विद्वान थे। भगवान महावीर के निकट इन तीनों ने अपने कई सौ " १. मजिम. ११९३ - भमवु. २०२ । २. दोघ. III ११७- ११८ - भमवु पृ. २१४ । ३. संयुक्त ४ । २८७ भमवु, पृ. 2161 ४. भमबु पृ. २२२ । ५. महावग्गा ६ । ३१-११- भमबु. पृ. २३१ - २३६ । ६. जातक २ । १८२ । ७. ASM.,p.159 ८. दोघ १ । ७८-७९ - [HQ.1, 153 ९. LWB,p.109. १०. भ्रम. ११७ । दिगम्बरत्व और दिगम्बर पुनि (65)
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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