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भगवान् महावीर और उनके समकालीन दिगम्बर मुनि
'निगण्ठो' आवुसो नाथपुतो सव्वज्ञु सव्वदस्साची अपरिसेसं ज्ञाण दस्सनं परिजानातिः । ' - मुज्झिमनिकाय 'निगण्डो नातुपुत्तो संघी चेव गणी च गणाचार्यो च ज्ञातो यसस्सी तित्थकरो साधु सम्मतो बहुजनस्स रत्तस्सू चिर पव्वजितो अद्धगतो वयो अनुप्पत्ता।' -दीघनिकायः
भगवान् महावीर वर्द्धमान ज्ञातृवंशी क्षत्रियों के प्रमुख राजा सिद्धार्थ और प्रियकारिणी त्रिशला के सुपुत्र थे। रानी त्रिशला वज्जियन राष्ट्रसंघ के प्रमुख लिच्छवि- अग्रणी राजा चेटक की सुपुत्री थी। लिच्छवि क्षत्रियों का आवास समृद्धिशाली नगरी वैशाली में था। ज्ञातृक क्षत्रियों की बसती भी उसी के निकट थी । कुण्डग्राम और कोल्लगसन्निवेश उनके प्रसिद्ध नगर थे। भगवान् महावीर वर्द्धमान का जन्म कुण्डग्राम में हुआ था और वह अपने ज्ञातृवंश के कारण "ज्ञातृपुत्र" के नाम से भी प्रसिद्ध थे। बौद्ध ग्रंथों में उनका उल्लेख इसी नाम से मिलता है और वहाँ उन्हें भगवान् गौतम बुद्ध का समकालीन बताया गया है। दूसरे शब्दों में कहें तो भगवान् महावीर आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पहले इस धरातल को पवित्र करते थे और वह क्षत्री राजपुत्र थे।'
भरी जवानी में ही महावीर जी ने राज-पाट का मोह त्याग कर दिगम्बर मुनि का वेश धारण किया था और तीस वर्ष तक कठिन तपस्या करके वह सर्वज्ञ और सर्वदर्शी तीर्थंकर हो गये थे। 'झिमनिकाय' नामक बौद्ध ग्रन्थ में उन्हें सर्वज्ञ, सर्वदर्शी और अशेष ज्ञान तथा दर्शन का ज्ञाता लिखा है। तीर्थंकर महावीर ने सर्वज्ञ होकर देश-विदेश में भ्रमण किया था और उनके धर्म प्रचार से लोगों का आत्म-कल्याण हुआ था। उनका बिहार संघ सहित होता था और उनको विनय हर कोई करता था। बौद्ध ग्रंथ 'दीर्घनिकाय' में लिखा है कि “निर्ग्रथ ज्ञातृपुत्र (महावीर) संघ के नेता हैं, गणाचार्य हैं, दर्शन विशेष के प्रणेता हैं, विशेष विख्यात हैं, तीर्थंकर हैं, वह
१. विशेष के लिये हमारा "भगवान् महावीर और महात्मा बुद्ध" नामक ग्रंथ देखो। २. मञ्झिमनिकाय (P.T.S.) भा. १, पृ. ९२-९३ ॥
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
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