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________________ इस प्रकार हिन्दू पुराण ग्रंथ भी इतिहासातीत काल में दिगम्बर जैन मुनियों का होना प्रपाणित करते हैं। बौद्ध शास्त्रों में भी ऐसे उल्लेख मिलते हैं जो भगवान महावीर के पहले दिगम्बर मुनियों का होना सिद्ध करते हैं। बौद्ध साहित्य में अंतिम तीर्थकर निग्रंथ महावीर के अतिरिक्त श्री सपाश्र्व' अनन्तजिन' और पुष्पदन्त के भी नामोल्लेख मिलते हैं। यद्यपि उनके सम्बन्ध में यह स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि वे जैन तीर्थकर और नग्न थे, किन्तु जब जैन साहित्य में उस नाम के दिगम्बर वेषधारी तीर्थकर महापुनीश मिलते हैं, तब उन्हें जैन और नग्न पानना अनुचित नहीं है। वैसे बौद्ध साहित्य भगवान पार्श्वनाथ के तीर्थवर्ती मुनियों का नग्न प्रकट करता है अतः इस स्त्रोत से भी प्राचीन काल में दिगम्बर मुनियों का होना सिद्ध है। इस अवस्था में जैन शास्त्रों का यह कथन विश्वसनीय ठहरता है कि भगवान् ऋषभनाथ के समय से बराबर दिगम्बर जैन मुनि होते आ रहे हैं और उनके द्वारा जनता का महत कल्याण हुआ है। जैन तीर्थकर सब हो राजपुत्र थे आर बड़े-बड़े राज्यों को त्यागकर दिगम्बर मुनि हुये थे। भारत के प्रथम सम्राट् भरत, जिनके नाम से यह देश भारतवर्ष कहलाता है, दिगम्बर मुनि हुये थे। उनके भाई श्री बाहुबलि जी अपनी तपस्या के लिए प्रसिद्ध हैं। तपस्वी रूप में उनकी पहान् पूर्ति आज भी श्रवणबेलगोल में दर्शनीय वस्तु है। उनको उस महाकाय नम्नमूर्ति के दर्शन करके स्त्री-पुरुष, बालक-वृद्ध भारतीय तथा विदेशी अपने को सौभाग्यशाली समझते हैं। रामचन्द्र जी. सुग्रीव, युधिष्ठर आदि अनेक दिगम्बर मुनि इस काल में हुये है, जिनके भव्य चरित्रों से जैन शास्त्र भरे हुये हैं। गतकाल में भारत में दिगम्बरत्व अपनी अपूर्व छठा दर्शा चुका है। १. महाबग्ग(१ । २२-२३ SEB. p. 144) में लिखा है कि बुद्ध राजगृह में जब पहले-पहले धर्म प्रचार को आए तो लाठी वन में "सुप्पतित्थ्य के मंदिर में ठहरे। इसके बाद इस मंदिर में ठहरने का उल्लेख नहीं मिलता। इसका कारण यही है कि इस जैन मंदिर के प्रबन्धको ने जब यह जान लिया कि महात्मा बुस अब जैन मुनि नहीं रहे तो उन्होंने उनका आदर करना रोक दिया। विशेष के लिये देखो भमबु, पृ. ५०-५१ । २. उपक आजीवक अनन्तजिनको अपना गुरु बताता है। आजीविकों ने जैन धर्म से बहुत कुछ लिया था। अतः यह अनन्तजिन तीर्थकर ही होना चाहिए। आरिय-परियेषण-सुत [HOIL, 247. ____३. 'महावस्तु में पुष्पदंत को एक बुद्ध और ३२ लक्षणयुक्त महापुरुष बताया गया है। -ASM. p. 30. ४. महावग्ग (७०-३) में है कि बौद्ध भिक्षुओं ने नंगे और भोजन पात्रहीन मनुष्यों को दीक्षित कर लिया, जिस पर लोग कहने लगे कि बौद्ध भी "तिथियों की तरह करने लगे। तिस्थिय महात्मा बुद्ध और भगवान् महावीर से प्राचीन साधु और खासकर दिगम्बर जैन साधु थे। इसलिये इन्हें पार्श्वनाथ के तीर्थ का मुनि मानना ठीक है। भमबु., पृ. २३६-२३७ व जैसिभ ११२-३।२४-२६, तथा IA., August 1930, दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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