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माया की उसमें “यो बिपि भी उक्त दोनों बातों की पुष्टि होती है।
इसी 'पद्मपुराण' में (भूमि खंड, अ. लिखा है कि एक दिगम्बर मुनि ने उस मुनि का स्वरूप यूं लिखा है
ए
लिखा है। इससे
“नम्न रूपो महाकायः सितमुण्डो महाप्रभः । मार्ज्जनीं शिखिपत्राणां कक्षायाँ स हि धारयन् । । गृहीत्वा पानपात्रश्च नारिकेलपनीकरे । पठमानो मरच्छास्त्रं वेदशास्त्रविदूषकम् ।। महाराजस्तत्रोपापात्त्वरान्वितः। सभायाँ तस्य वेणस्य प्रविवेश सपापवान् । ।
यत्रवेणी
वह नग्न साधु महाराज वैण की राजसभा में पहुंच गया और धर्मोपदेश देने लगा। इससे प्रकट है कि दिगम्बर मुनि राजसभा में भी बेरोक-टोक पहुंचते थे। वेण ब्रह्मा से छठी पीढ़ी में थे। इसलिये यह एक अतीव प्राचीनकाल में हुये प्रमाणित होते हैं।
'वायुपुराण' में भी निर्ग्रथ श्रमणों का उल्लेख है कि श्राद्ध में इनको न देखना
६६) २ में राजा वेण की कथा है। उसमें राजा को जैन धर्म में दीक्षित किया था।
चाहिये।
'स्कंध पुराण' (प्रभासखण्ड के वस्त्रापथ क्षेत्र माहात्म्य, अ. १६ पृ. २२१) में जैन तीर्थकर नेमिनाथ को दिगम्बर शिव के अनुरूप मानकर जाप करने का विधान है - "कापनोपि ततश्चक्रे तंत्र तीर्थावगाहनम्
यादृग्रूप शिवोदृष्टः सूर्यविम्बे दिगम्बर ||२४|| पद्मासनस्थितः सौम्यस्तथातं तत्र संस्मरन् । प्रतिष्ठाप्य महापूर्ति पूजयामासवासरम् ।। ९५ ।। मनोभीष्ठार्थ - सिद्धार्थे ततः सिद्धमवाप्तमान्। नेमिनाथ शिवेत्येवं नामचक्रे शवामनः
।।९६।।"
बेजे..
१. पृ. १५ ।
२. R. C. Duti. Hindu Shastras. Pt Vill. pp. 213-22 & J,G.XIV. 89. ३. उसने बताया कि मेरे मत में
४. J.G., XIV, 162.
५. पुरातत्व, पृ.४, पृ. १८१ । ६. वेजे., पू. ३४१
"अर्हतो देवता यत्र निर्ग्रथो गुरुरुच्यते ।
दया वै परमो धर्मस्तत्र मोक्षः प्रदृश्यते । "
यह सुनकर वेण जैनी हो गया। (एवं वेणस्य वै राज्ञः सृष्टिरेस्व महात्मनः । धर्माचार परित्यज्य कथं पापे मतिर्भवेत् ।। ) जैन सम्राट् खारवेल के शिलालेख से भी राजा वेण का जैनी होना प्रमाणित है। (जर्नल ऑफ दी बिहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी, भा. १३, पृ. २२४)।
दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि
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