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________________ t में दिगम्बर मुनि किया गया है, जो ठीक है, क्योंकि दिगम्बर पुनि का एक नाम 'भ्रमण' भी है, तथापि जैन शास्त्र राजा दशरथ और रामचन्द्र जी आदि का जैन भक्त प्रगट करते हैं। योगवाशिष्ट' में रामचन्द्र जी 'जिन भगवान्' के समान होने की इच्छ प्रकट करके अपनी जैनभक्ति प्रकट करते हैं। अतः रामायण के उक्त उल्लेख से उस काल में दिगम्बर मुनियों का होना स्पष्ट है। ३ "महाभारत" मैं भी 'नग्न क्षपणक' के रूप में दिगम्बर मुनियों का उल्लेख मिलता है, जिससे प्रमाणित है कि "महाभारत काल" में भी दिगम्बर जैन मुनि मौजूद थे। जैन शास्त्रानुसार उस समय स्वयं तीर्थंकर अरष्टनेमि विद्यमान थे। हिन्दू पुराण ग्रंथ भी इस विषय में वेदादिग्रंथों का समर्थन करते हैं। प्रथम जैन तीर्थकर ऋषभदेवजी को श्रीमद्भागवत और विष्णुपुराण दिगम्बर मुनि प्रगट करते है, यह हम देख चुके। अब 'विष्णुपुराण' में और भी उल्लेख है वह देखिये।" वहाँ मैत्रेय पाराशर ऋषि से पूछते है कि 'नग्न' किसको कहते हैं? उत्तर में पाराशर कहते हैं कि " जो वेद को न माने वह नग्न है" अर्थात् वेद विरोधी नंगे साधु 'नग्न' हैं। इस संबंध में देव और असुर संग्राम की कथा कहकर किस प्रकार विष्णु के द्वारा जैन धर्म को उत्पत्ति हुई, यह वह कहते हैं। इसमें भी जैन मुनि का स्वरूप 'दिगम्बर' लिखा है" ततो दिगम्बरो मुंडो कर्हिपत्र धरो द्विज । " देवासुर युद्ध की घटना इतिहासातीत काल की है। अतः इस उल्लेख से भी उस प्राचीन काल में दिगम्बर मुनि का अस्तित्व प्रमाणित होता है तथा वह निर्बाध विहार करते थे, यह भी इससे स्पष्ट है क्योंकि इसमें कहा गया है कि वह दिगम्बर मुनि नर्मदा तट पर स्थित असुरों के पास पहुंचा और उन्हें निज धर्म में दीक्षित कर लिया। 'पद्यपुराण' प्रथम सृष्टि, खण्ड १३ (पृ. ३३) पर जैन धर्म की उत्पत्ति के संबंध में एक ऐसी ही कथा है, जिसमें विष्णु द्वारा मायामोह रूप दिगम्बर मुनि द्वारा जैन धर्म का निकास हुआ बताया गया है (58) वृहस्पति साहाय्यार्थ विष्णुना मायामोह समुत्पादवम् दिगम्बरेण मायामोहने दैत्यान् प्रति जैनधर्मोपदेशः दानवानां मायामोह मोहितानां गुरुणा दिगंबर जैनधर्म दीक्षा दानम्। १. "श्रमण दिगम्बराः श्रमणा वातवसनाः । " २. पद्यपुराण देखो। ३. योग वासिष्ट, अ. १५ श्लो. ८१ ४. आदिपर्व अ. ३, श्लो. २६-२७ । ५. विष्णुपुराण तृतीयश, अ. १७-१८ बेजैं. पू. २५ व पुरातत्व ४ । १८० ॥ " ६. पुरातत्व ४ । १७९ । וי दिम्बा और दिगम्बर मुनि
SR No.090155
Book TitleDigambaratva Aur Digambar Muni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Sarvoday Tirth
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size4 MB
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