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'हीन ब्रात्य' और 'जयेष्ठ व्रात्य किये हैं। इनमें ज्येष्ठ व्रात्य दिगम्बर मुनि का द्योतक है, क्योंकि उसे 'स्मनिचमेद्र' कहा गया है. जिमका भाव होता है 'अपेतप्रजननाः।' यह शब्द'अहोक' शब्द के अनुरूप है ओर इसमे ज्येष्ठ व्रात्य का दिगम्बरत्व स्पष्ट है।
इस प्रकार वेदों से भी दिगम्बर मुनियों का अस्तित्व सिद्ध है। अब देखिये उपनिषद् भी वेदो का समर्थन करते है। 'जाबालोपनिषद्' निग्रंथ शब्द का उल्लेख करके दिगम्बर साधु का अस्तित्व उपनिषद् काल में सिद्ध करता है
"यथाजातरूपधरो निग्रंथो निष्परिग्रहः
शुक्लध्यानपरायणः।" ................ (सूत्र ६) निग्रंथ साधु यथाजातरूपधारी तथा शुक्ल ध्यान परायण होता है। सिवाय निग्रंथ (जैन) मार्ग के अन्यत्र कहीं भी शुक्ल ध्यान का वर्णन नहीं मिलता, यह पहले भी लिखा जा चका है। 'मैत्रेयोपनिषद' में 'दिगम्बर' शब्द का प्रयोग भी इसी बात का द्योतक है। * 'पुण्डकोपनिषद्' की रचना भृगु अंगरिंस नामक एक भ्रष्ट दिगम्बर जैन मुनि द्वारा हुई थी और उसमें अनेक जैन मान्यतायें तथा पारिभाषिक शब्द मिलते हैं। 'निग्रंथ' शब्द. जो खास जैनों का पारिभाषिक शब्द है, इसमें व्यवह्वत हुआ है और उसका विश्लेषण केशलोंच (शिरोव्रतं विधिवास्तु चीर्ण) दिया है तथा 'अरिष्टनेपि' का स्मरण भी किया है, जो जैनियों के बाईसवें तीर्थकर है। इससे भी उस काल में दिगम्बर मुनियों का होना प्रपाणित है।
अब 'रामायण काल' में दिगम्बरमुनियों के अस्तित्व को देखिये। 'रामायणके 'बालकाण्ड' (सर्ग १४, श्लोक , २२) में राजा दशरथ श्रमणों को आहार देते बताये गये है (“तापसा भुञ्जते चापि श्रमण भुञ्जते तथा") और 'श्रमण' शब्द का अर्थ 'भूषणटीका'
१, भपा., प्रस्तावना, पृ.४४-४५।
२. जैन ग्रन्थकार प्रातः स्मरणीय स्व. पं.टोडरमल जी ने आज से लगभग दो-ढाई सौ वर्ष पहले (१) निम्न वेद मंत्रों का उल्लेख अपने ग्रंथ 'मोक्षमार्ग प्रकाश में किया है और ये भी दिगम्बर मुनियो के द्योतक हैं
वेद में आया है- "ॐ त्रैलोक्य प्रतिष्ठितान चतुर्विंशति तीर्थकान ऋपमाधा वर्द्धमानान्तान् सिद्धान् शरणं प्रपद्य। ऊँ पवित्रं नग्नमुपविप्रसामहे एषां नग्ना जातिर्येषां वीरा इत्यादि।
यजुर्वेद में है-ऊँनमो अर्हतो ऋषधो ऊ ऋषभपवित्रं पुरुहूतमध्वदं यज्ञेषु नग्नं परममाह सस्तुतं वर शत्रु जंयतं पशुरिद्रमार्तिरिति स्वाहा।” ऊं नम्न सुधीर दिग्वाससे ब्रह्मागर्व सनातनं उपैमि वीर पुरुषमहतमादित्य वर्णा तमसः पुरस्तात् स्वाहा।" (पृ. २०२)
३. "देशकालविमुक्ततोऽस्मि दिगम्बर सुखोस्म्यहम्" -दिमु.१.१० ४. वीर, वर्ष ८, प. २५३। ५. स्वस्ति नस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः।'
-ईशाध, पृ. १४
दिगम्यरत्व और दिगम्बर मुनि