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'यजुर्वेद (अ. १९, मंत्र १४ ) में, जो इस परिच्छेद के आरंभ में दिया हुआ है, अन्तिम तीर्थंकर महावीर का स्मरण नग्न विशेषण के साथ किया गया है। 'महावीर' और 'नग्न' शब्द जो उक्त मन्त्र में प्रयुक्त हुये है उनके अर्थ कोष ग्रंथो में अंतिम जैन तीर्थंकर और दिगम्बर ही मिलते हैं। इसलिये इस मंत्र का सम्बन्ध भगवान् महावीर से मानना ठीक है। वैसे बौद्ध साहित्यादि से स्पष्ट है कि महावीर स्वामी नग्न साधु थे। इस अवस्था में उक्त मंत्र में 'महावीर' शब्द 'नग्न' त्रिशेषण सहित प्रयुक्त हुआ, जो इस बात का द्योतक है कि उसके रचयिता को तीर्थंकर महावीर का उल्लेख करना इष्ट है। इस मंत्र में जो शेष विशेषण है वह भी जैन तीर्थंकर के सर्वथा योग्य हैं और इस मंत्र का फल भी जैन शास्त्रानुकूल है । अतः यह मंत्र भगवान् महावीर को दिगम्बर पुनि प्रकट करता है।
किन्तु भगवान महावीर तो ऐतिहासिक महापुरुष मान लिये गये हैं, इसलिये उनसे पहले के वैदिक उल्लेख प्रस्तुत करना उचित है। सौभाग्य से हमें ऋक्संहिता (१० | १३६ - २ ) में ऐसा उल्लेख निम्न शब्दों में मिल जाता है“मुनयो वातवसनाः । "
भला यह वातवसन - दिगम्बर मुनि कौन थे ? हिन्दु पुराण ग्रंथ बताते हैं कि वे दिगम्बर जैन मुनि थे। जैसे कि हम पहले देख चुके है और भी देखिये, श्रीमद्भागवत् में जैन तीर्थंकर ऋषभदेव ने जिन ऋषियों को दिगम्बरत्व का उपदेश दिया था, वे 'बातरशनानां श्रमण' कह गये हैं। ओ. अल्बट वैबर भी उक्त वाक्य को दिगम्बर जैन मुनियों के लिये प्रयुक्त हुआ व्यक्त करते हैं। *
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इसके अतिरिक्त अथर्ववेद (अ. १५) में जिन 'व्रात्य' पुरुषों का उल्लेख है, वे दिगम्बर जैन ही हैं, क्योंकि व्रात्य 'वैदिक संस्कारहीन' बताये गये हैं और उनकी क्रियायें दिगम्बर जैनों के समान है। वे वेद विरोधी थे। झल्ल मल्ल, लिच्छवि, ज्ञातृ, करण, खस और द्राविड़ एक बार क्षत्री की सन्तान बताये गये हैं और ये सब प्रायः जैन धर्म भूकृधे । ज्ञातृवंश में तो स्वयं भगवान महावीर का जन्म हुआ था, तथापि, मध्यकाल में भी जैनी 'व्रती' (Verteis) नाम से प्रसिद्ध रह चुके हैं, जो 'व्रात्य' से मिलता-जुलता शब्द है।' अच्छा तो इन जैन धर्म भूकृव्रात्यों में दिगम्बर जैन मुनि का होना लाजमी है। " 'अर्थवेद' भी इस बात को प्रकट करता है। उसमें ब्रात्य के दो भेद
१. बेंजे, पृ. ५५-६० ॥ २. वेजे, पृ. ३ ।
३. I.A., Vol. XXX, p.280.
४. अपरकोष २ । ८ व मनु. १० | २०. सायणाचार्य भी यही कहते हैं- "व्रात्यो नाम उपनयनादि संस्कारहीनः पुरुषः । सोऽर्थाद् यज्ञादिवेदविहिताः क्रियाः कर्तुं नाधिकारी । इत्यादि" - अथर्ववेद संहिता पृ. २९३
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५. मनु., १० । २२ ।
६. स. पू. ३९८
३९९ ।
७.
'व्रात्य जैनी है, इसके लिये "भगवान् पार्श्वनाथ" की प्रस्तावना देखिए ।
दिगम्बरea और दिगम्बर मुनि